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________________ पत्र ११३७ ११३७ ११३८ ११३८-३९ ११३९ ३८ बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम । गाथा विषय ४१८९ त्रिकृत्स्नप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध निर्ग्रन्थविषयक त्रिकृत्स्नसूत्रनी व्याख्या ४१९०-९१ द्रव्य-भावपद्वारा निर्ग्रन्थनी चतुरुंगी। ४१९२-९४ द्रव्यनिर्ग्रन्थ अने भावनिर्ग्रन्थनुं स्वरूप दर्शाववा माटे देव असुर राक्षस अने मनुष्य स्त्री-पुरुषना संवासविषयक षोडशभंगी अने मनुष्यत्री साथे संवास राखनार यक्षनुं दृष्टान्त ४१९५-९६ रजोहरण, गोच्छक अने प्रतिग्रहपदनी अने कृत्स्न पदनी व्याख्या ४१९७-४२११ पहेल वहेली प्रव्रज्या लेनार शिष्यने लगतो चैत्य आचार्य उपाध्याय भिक्षु वगेरेनी पूजा-सत्कारनो विधि, तेने लगती विशोधिकोटि-अविशोधिकोटिनु स्वरूप, आ सम्बन्धमा मतान्तरो अने तेने लगतां सहस्रानुपातिविष अने मेरुमहीधरनां दृष्टान्तो ४२१२-२३ रजोहरण-गोच्छक-प्रतिग्रहरूप विकृत्स्न खरीदवा योग्य कुत्रिकापणो, कुत्रिकापणनुं वर्णन, कुत्रिकापणो केवी रीते उत्पन्न थाय छे अने प्राचीन काळमां कुत्रिकापणो कया कया नगरोमां हतां तेनुं वर्णन ४२२४-२८ पहेलवहेली दीक्षा लेनारना सात निर्योगोनी एटले उपकरणनी जोडोनी वहेंचणी ४२२९-३२ एक वार दीक्षा मूकी पुनः दीक्षा लेवा तैयार थना रने अंगे वीरणसढक घास, उदाहरण अने यस्वैषणा तथा पात्रैषणाना जाणकार अने नहि जाणकार दीक्षा लेनारने आश्री त्रिकृत्स्नग्रहणनो विभाग निर्ग्रन्थीविषयक चतु:कृत्लसूत्र पहेलवहेली दीक्षा लेनार निर्ग्रन्थीने चार जोड जघन्य मध्यम उत्कृष्ट उपधि लइने प्रत्रजित थर्बु कल्पे आदि ११३९-४३ ११४३-४६ ११४६-४७ ११४७-४८ ११४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002513
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages444
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size24 MB
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