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पत्र
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बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम । गाथा
विषय ४१८९ त्रिकृत्स्नप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध
निर्ग्रन्थविषयक त्रिकृत्स्नसूत्रनी व्याख्या ४१९०-९१ द्रव्य-भावपद्वारा निर्ग्रन्थनी चतुरुंगी। ४१९२-९४ द्रव्यनिर्ग्रन्थ अने भावनिर्ग्रन्थनुं स्वरूप दर्शाववा
माटे देव असुर राक्षस अने मनुष्य स्त्री-पुरुषना संवासविषयक षोडशभंगी अने मनुष्यत्री साथे
संवास राखनार यक्षनुं दृष्टान्त ४१९५-९६ रजोहरण, गोच्छक अने प्रतिग्रहपदनी अने कृत्स्न
पदनी व्याख्या ४१९७-४२११ पहेल वहेली प्रव्रज्या लेनार शिष्यने लगतो चैत्य
आचार्य उपाध्याय भिक्षु वगेरेनी पूजा-सत्कारनो विधि, तेने लगती विशोधिकोटि-अविशोधिकोटिनु स्वरूप, आ सम्बन्धमा मतान्तरो अने तेने लगतां
सहस्रानुपातिविष अने मेरुमहीधरनां दृष्टान्तो ४२१२-२३ रजोहरण-गोच्छक-प्रतिग्रहरूप विकृत्स्न खरीदवा
योग्य कुत्रिकापणो, कुत्रिकापणनुं वर्णन, कुत्रिकापणो केवी रीते उत्पन्न थाय छे अने प्राचीन काळमां
कुत्रिकापणो कया कया नगरोमां हतां तेनुं वर्णन ४२२४-२८ पहेलवहेली दीक्षा लेनारना सात निर्योगोनी एटले
उपकरणनी जोडोनी वहेंचणी ४२२९-३२ एक वार दीक्षा मूकी पुनः दीक्षा लेवा तैयार थना
रने अंगे वीरणसढक घास, उदाहरण अने यस्वैषणा तथा पात्रैषणाना जाणकार अने नहि जाणकार दीक्षा लेनारने आश्री त्रिकृत्स्नग्रहणनो विभाग
निर्ग्रन्थीविषयक चतु:कृत्लसूत्र पहेलवहेली दीक्षा लेनार निर्ग्रन्थीने चार जोड जघन्य मध्यम उत्कृष्ट उपधि लइने प्रत्रजित थर्बु कल्पे आदि
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