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________________ गाथा ३८०५-६ ३८०७-१४ ३८१५ - १९ ३८२०-४३ ३८२० ३८२१ ३८२२-४३ ३८४४-७१ ३८४४-४५ ३८४६-५५ ३८५६-७१ Jain Education International बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम | विषय चर्मप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथै सम्बन्ध निर्ग्रन्थीविषयक सलोमचर्मसूत्रनी व्याख्या निर्ग्रन्थीओने सलोम चर्मना उपभोगथी लागतां प्रायश्चित्तो अने दोषोनुं स्वरूप निर्मन्थीओने आश्री सलोम चर्मना उपभोग विषयक अपवाद अने तेने लगतो विधि निर्ग्रन्थविषयक सलोमचर्मसूत्र निर्मन्थोने परिभोग करेल एकरात्रिक प्रातिहारिक सलोम चर्मनो उपभोग करवो कल्पे निर्मन्थविषयक सोमचर्मसूत्रनी व्याख्या निर्ग्रन्थीओने सलोम चर्म नहि कल्पवानां कारणो सलोम चर्म उत्सर्गथी निर्मन्थोने पण अकल्प्य छे पुस्तकपञ्चक, तृणपञ्चक, दूष्यपञ्चकद्वय अने चर्मपञ्चकनुं स्वरूप अने तेना उपभोगने लगतां प्रायश्चित्तो, दोषो, यतना वगेरे ५ निर्ग्रन्ध-निर्ग्रन्थीविषयक कृत्स्नचर्मसूत्र निर्मन्थ-निर्ग्रन्थीओने कृत्स्नचर्मनो एटले वर्ण-प्रमानादियुक्त चर्मनो उपभोग के संग्रह करवो कल्पे नहि निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीविषयक कृत्स्नचर्मसूत्रनो पूर्वसूत्र साथै सम्बन्ध निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीविषयक कृत्स्नचर्म - सूत्रनी व्याख्या कृत्स्नना सकलकृत्स्न, प्रमाणकृत्स्न, वर्णकृत्स्न अने बन्धनकृत्स्न ए चार प्रकारो, तेनुं स्वरूप अने तेने लगतां प्रायश्चित्त कृत्स्नचर्मना उपभोगादिने आश्री लागता दोषोनुं १ गर्व २ निर्मार्दवता ३ निरपेक्ष ४ निर्दय ५ निरन्तर ६ भूतोपघात ए छ द्वारो वडे पण, तेने लगता अपवादो, यतना आदि निरू For Private & Personal Use Only २९ पत्र १०५०-५१ १०५१ १०५१-५२ १०५२-५३ १०५३-५९ १०५३ १०५४ १०५४ १०५४ - ५९ १०५९-६५ १०५९ १०५९ १०५९-६१ १०६१-६५ www.jainelibrary.org
SR No.002513
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages444
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size24 MB
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