SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ वृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम । गाथा पत्र १०३८-३९ १०३९-४० १०४० १०४०-४२ विषय ३७४९-५४ प्रकारान्तरे प्राघुणकद्वार परदेशी अने ते देशनी भाषार्थी अपरिचित निर्ग्रन्थो वसति आदि मेळववा माटे निर्ग्रन्थीना उपाश्रयमा जाय तेने लगतो विधि ३७५५-५६ ३ गणधरद्वार निर्ग्रन्थीने साप वगेरे करडेल होय, दाहज्वर वगेरे थएल होय इत्यादि कारणसर गणधरादि निम्रन्थीना उपाश्रयमा जइ शके. ३७५७-५९ ४ महर्द्धिकद्वार प्रवजित राजा-अमात्य-श्रेष्ठी-पुरोहितादि निम्रन्थीना उपाश्रयमा जइ शके तेमना जवाथी थता लाभो ३७६०-६७ ५ 'प्रच्छादना च शैक्षे' द्वार . दीक्षित राजकुमारादिना प्रच्छादनमाटे निर्ग्रन्थीनी वसतिमां जवा आदिने लगतो विधि ३७६८-३८०१ ६ 'असहिष्णोश्चतुष्कभजना' द्वार ग्लान निर्ग्रन्थी अने तेना प्रतिचरक निम्रन्थविषयक सहिष्णु-असहिष्णु पदनी चतुरंगी अने तेने लगती यतनाओनुं विस्तृत वर्णन अने अपवाद ३८०२-४ २ निन्धोपाश्रयप्रवेशसूत्र निर्मन्थीओने निम्रन्थोना उपाश्रयमा उभा रहे, सुवं, बेस वगेरे कशुं य करवू कल्पे नहि ३८०२ निर्ग्रन्थोपाश्रयप्रवेशसूत्रनो पूर्वसूत्र साथे सम्बन्ध निर्ग्रन्थोपाश्रयप्रवेशसूत्रनी व्याख्या . ३८०३-४ निम्रन्थोपायप्रवेशसूत्रनी व्याख्यामादे पूर्वसूत्रनी व्याख्यानी भलामण १०४२-४९ १०४९-५० १०५० १०५० १०५० %3 १०५०-६६ ३८०५-७८ ३८०५-१९ चर्मप्रकृत सूत्र ३-६ ३ निर्ग्रन्थीविषयक सलोमचर्मसूत्र निम्रन्थीओने रोमयुक्त चामडानो बेसवा आदि तरीके उपभोग करवो कल्पे नहि १०५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002513
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages444
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy