SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा ६९२ २४३६ ६९२ २४३७-४२ ६९२-९३ २४४३-४५ बृहत्कल्पसूत्र तृतीय विभागनो विषयानुजाचार्य विषय प्रवर्तिनी भिक्षुणीओने न समजावे, भिक्षुणी ते न सांभळे तेने लगतां प्रायश्चित्तो अने दोपो सागारिकनी-शय्यातरनी निश्राए न रहेनार निर्ग्रन्थीओने प्रायश्चित्तो सागारिकनी निश्रा सिवाय रहेनार निर्ग्रन्थीओने लागता दोषो अने तेना समर्थनमाटे गवादिपशुवर्ग, अजिका-बकरी, पक्वान्न, इक्षु, घी आदि दृष्टान्तो अपवादपदे सागारिकनी निश्रा सिवाय रहे, पडे त्यारे केवी वसतिमां-उपाश्रयमा रहेQ ? योग्य वसतिना अभावमां वृषभो केवी रीते निर्घन्धीओनी रक्षा करे अने ते वृषभो केवा सद्गुणोथी विभूपित होय ? तेनुं स्वरूप २४ सागारिकनिश्रासूत्र निर्ग्रन्थो सागारिकनी निश्राए के अनिश्राए रही शके ___२४ सागारिकनिश्रासूत्रनी व्याख्या निर्ग्रन्थो उत्सर्गथी सागारिकनी निश्राए न रहे पण कारणसर तेओ सागारिकनी निश्राए रही शके विनाकारणे सागारिकनी निश्राए रहेनारने प्रायश्चित्त अने लागता दोषो अपवादपदे निर्ग्रन्थोने सागारिकनी निश्राए रहेवानां कारणो ६९३-९४ ३९४ २४४६-४८ ६९४ २४४६ ६९४ २४४७ ६९५ २४४८ ६९५ २४४९-२५८२ सागारिकोपाश्रयप्रकृत सूत्र २५-२९ ६९५-७२६ २४४९-२५५० २५ पहेलं सागारिकोपाश्रय सूत्र ६९५-७१८ निम्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने सागारिकना सम्बन्धवाळा उपाश्रयमा रहेवं कल्पे नहि सागारिकोपाश्रयप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथै सम्बन्ध २५ पहेला सागारिकोपाश्रयसूत्रनी व्याख्या २४५०-२५५० सागारिकनुं स्वरूप ६९६-७१८ सागारिकपदना निक्षेपो २४४९ २४५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002512
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 03
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages364
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy