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गाथा
२२९५-२३२५
२२९५-२३२४
२३०४-२४
२२९५-९६ aasiसूत्र साथ आपणगृहादिसूत्रनो संबंध प्रथम आपणगृहादिसूत्रनी व्याख्या
२२९७ - २३०३ आपण गृह, रथ्यामुख, शृङ्गाटक, चतुष्क, चत्वर, अंतरापण आदि पदोनी व्याख्या अने आ स्थानोमां रहेला उपाश्रयमां वसनार श्रमणीओने प्रायश्चित्तो आपणगृह, रध्यामुख आदि सार्वजनिक स्थानोमां आवेला उपाश्रयोमां वसती श्रमणीओने जुवान पुरुषो, वेश्यास्त्रीओ विवाह वगेरेना वरघोडाओ, राजा आदि अलङ्कृत-विभूषित पुरुषो वगेरेने जोवाथी उद्भवता दोषो तेम ज सरियाम रस्ता उपर रती साध्वीओने जोई लोकोमां थता अवर्णवादादि दोषोनुं विस्तृतवर्णन अने योग्य उपाश्रयना अभामां तेवा उपाश्रयोमां वसवुं पडे तेने लगती जयणाओ
२३२५
बृहत्कल्पसूत्र तृतीय विभागनो विषयानुक्रम |
विषय
अरण्यवासनुं समर्थन अने ते सामे प्रतिवाद करवामाटे मुरुण्डराजना दूतनुं उदाहरण
आपणगृह- रथ्यामुखादिप्रकृत
सूत्र १२-१३
१२ प्रथम आपणगृहादिसूत्र जे उपाश्रयनी चोमेर के पडखामां दुकानो होय त्यां अथवा जे उपाश्रय aण रस्ता, चार रस्ता के छ रस्ता जेवा धोरी रस्ता उंपर आव्यो होय त्यां निर्मथीओए रहेवुं नहि
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१३ बीजुं आपणगृहादिसूत्र निर्ग्रन्थो आपणगृह, रथ्यामुख आदि जाहेर स्थानोमां आवेला उपाश्रयोमां कारणसर यतनापूर्वक बसी शके
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पत्र
६४९-५०
६५१-५९
६५१-५९
६५१
६५१
६५१-५३
१ पृष्ठ ६५१ ने मथाळे अमारी विस्मृतिने लीधे अपावृतद्वारोपाश्रयप्रकृतम् एम छपायेल छे तेने
बदले आपणगृह-रथ्यामुखादिप्रकृतम् एम समज ॥
६५३-५८
६५९
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