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१८
गाथा
२२४५-६३
२२६४-७१
२२७२-७७
२२७८-८७
२२८८-९४
२२८८-८९
२२९०-९४
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बृहत्कल्पसूत्र तृतीय विभागनो विषयानुक्रम |
विषय
४ उच्चनीचद्वार
श्रमण श्रमणीओ एकबीजानी एकबीजा उपर के सामे नजर पडे तेवा उपाश्रयमां रह्या होय तेथी उद्भवता दोषो अने तेने लगतां विविध प्रायश्चित्तो [ गाथा २२५८- ६१- - दश कामावस्थानुं - विकारना आवेगोनुं स्वरूप ] ५ धर्मकथाद्वार
-काम
निर्मन्थ-निर्ग्रन्थीओ ज्यां एक वीजानी नजीकमां वता होय त्यां रात्रिना वखते धर्मकथा स्वाध्याय वगेरे करवानो विधि
निर्ग्रन्थ- निर्मन्थीओ अशिव दुर्भिक्ष आदि कारणोने लई एकाएक अणधारी रीते एकवगडा - अनेकद्वारवाळा गाम-नगरादिमां भेगा आवी पडे त्यां उपाश्रय मेळववाने लगती तेम ज योग्य उपाश्रय न मळतां एकबीजाना उपाश्रयनी नजीकमां वसवानो प्रसंग प्राप्त थतां एक बीजाए केम वर्त्ततुं तेने लगती जयणाओ
वगडा-द्वारपदनी चतुर्भङ्गी पैकी 'अनेकवगडाएकद्वार ' रूप त्रीजा भांगावाळा गाम-नगरादिमां निर्ग्रन्थ-निर्मन्थीओने समकाळे रहेवाथी लागता दोषो अने ते विषे कसुंबलवखनी रक्षानिमित्ते नग्न थनार अगारी, अश्व, फुम्फुक अने पेशीनां दृष्टान्तो
११ बीजुं वगडासूत्र निर्मन्थ- निर्मन्थीओए 'अनेकवगडा - अनेकद्वार' वाळा गाम - नगरादिमां वसवुं जोइए
जे गाम-नगरादिमां निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओनी भिक्षाभूमी, स्थंडिलभूमी, विहारभूमी वगेरे जुदां जुदां होय तेवा क्षेत्रमां तेओए रद्देवुं गाम-नगरादिमां वसता निर्मन्थ-निर्ग्रन्थीओमाटे स्त्रीपुरुषनो सहवास अनिवार्य होई शिष्यद्वारा तेमना
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पत्र
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६४३-४४
६४५-४६
६४७-४९
६४९-५०
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