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________________ बृहत्कल्पसूत्र तृतीय विभागनो विषयानुक्रम । १७ गाथा पत्र ६२८-३० ६३०-३३ विषय २१९४-२२०४ एक दरवाजावाळा गाम-नगर आदिमां श्रमणीओ रहेली होय त्यां श्रमणोना रहेवाथी श्रमणीओने विचारभूमी-भिक्षाचर्या आदि निमित्ते पडती हरकतो अने ते विषे भोगिकनुं दृष्टान्त २२०५-१७ एकद्वार आदिवाळा गाम-नगरादिमां श्रमणीओ रहेली होय त्यां रहेला श्रमणोने कुलस्थविरो द्वारा रहेवाना कारणनो प्रश्न अने कारणसर एकक्षेत्रमा साथे वसता निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओनी विचारभूमी भिक्षाचर्या आदि विषयक व्यवस्था २२१८-३१ जुदा जुदा समुदायना श्रमण श्रमणीओ एक क्षेत्रमा एकी साथे रहेला होय त्यां एकवीजा समुदायनी श्रमणीओने परस्परमां लडी पडवानां कारणो अने तेनी शान्तिमाटे आचार्य, प्रवर्तिनी वगेरेए शुं कर तेनो विधि तेमज एथी उलटा वर्तनार आचार्यादिने प्राप्त थता कलंकादिदोषो अने प्रायश्चित्तो २२३२-७७ वगडा-द्वारपदनी चतुर्भङ्गी पैकी 'एक वगडा-अनेकद्वार'रूप वीजा भांगावाळा गाम-नगर आदिमां समकाळे साथे रहेवाथी निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने लागता दोषो २२३२-३४ 'एकवगडा-अनेकद्वार'रूप वीजा भांगामां लागता दोषोना वर्णनमादे प्रतिज्ञा अने द्वारगाथा २२३५-४० १ एकशाखिकाद्वार वाडना आंतरावाळा एक ओळमां रहेला घरमां साथे वसता निम्रन्थ-निर्ग्रन्थीओने परस्पर वार्ता लाप, कुशलप्रश्न आदि निमित्ते लागता दोपो २२४१-४४ २ सप्रतिमुखद्वारद्वार ३ 'पार्श्वतो मार्गतो वा' द्वार निम्रन्थीना उपाश्रयनी सामे, बाजुए अगर पाछळ दरवाजावाळा उपाश्रयमा निग्रंथोना वसवाथी संभवता दोषो ६३३-३६ ६३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002512
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 03
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages364
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size19 MB
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