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________________ १६ बृहत्कल्पसूत्र तृतीय विभागनो विषयानुक्रम । गाथा ६१४-१८ २१५४-५६ ६१८ २१५७-६२ ६१८-१९ २१६३-७२ विषय विचार करनार, तेमज ए क्षेत्रमा जवानो निर्णय करनार आचार्य, उपाध्याय, वृषभ, भिक्षु वगेरेने लक्षीने प्रायश्चित्तो अने तेथी उत्पन्न थता वेदोदय आदि दोषोनुं अग्निना दृष्टान्त द्वारा समर्थन देहशोभाथी रहित, नीरसभोजी तेमज स्वाध्यायध्यान आदिमां रच्यापच्या साधुओने वेदोदय आदि दोषो लागे ज क्यांथी ? ए प्रकारनी शिष्यनी शङ्का अने तेनुं समाधान वेदोदयना अतिप्रबलपणानुं समर्थन अने ते विषे योद्धानुं अने गारुडिकनुं दृष्टान्त श्रमण अने श्रमणीओ जुदी जुदी वसतिमां वसता होई एक वीजाना सहवासने तजी शके परन्तु गाममा वसनार श्रमणोमाटे गृहस्थ स्त्रीओनो सहवास अनिवार्य होई, शिष्यद्वारा श्रमणोमाटे वनवासनुं समर्थन अने ते सामे आचार्यनो प्रतिवाद चूतफलदोषदर्शी राजानुं दृष्टान्त तेमज श्रमणीओना सहवासवाळा गाम आदिना त्यागनां कारणो एकवगडा-एकद्वार आदिवाळा गाम, नगरादिमां साथे वसता श्रमण-श्रमणीओने विचारभूमी, भिक्षाचो, विहारभूमी, यति-चैत्यवन्दन आदि निमित्ते लागता दोषो एक दरवाजा आदि वाळा ग्राम, नगर आदिमां साथे रहेता श्रमण-श्रमणीओने विचारभूमीए-स्थंडिलभूमीए जतां रस्तामां परस्पर भेगा थवाथी उत्पन्न थता विविध दोषो अने तेने लगतां प्रायश्चित्तो एकद्वारवाळा गाम-नगर आदिमां साथे वसता श्रमण-श्रमणीओने भिक्षाचर्यामाटे जतां सेरी देवळ वगेरेमा अणधारी रीते परस्पर भेगा थई जवाथी लागता दोषो अने सेरी देवळ वगेरेमां श्रमणश्रमणीओना पेसवा-नीकळवाने लगती चतुर्भङ्गी अने ए चतुर्भङ्गीने आश्री प्रायश्चित्तोना पांच आदेशो ६२०-२२ २१७३ ६२२ २१७४-८० ६२२-२४ २१८१-९३ ६२४-२७ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002512
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 03
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages364
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size19 MB
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