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________________ २६ बृहत्कल्पसूत्र द्वितीय विभागनो विषयानुक्रम । गाथा पत्र ४४७-४८ १५१३-२० १५२१-३० ४४९-५१ १५३१-४२ ४५१-५४ १५४५-४६ ४५५ ४५५-५६ १५४७-५० १५५१ ४५६ १५५२-५३ विषय प्रतिलिखित क्षेत्रनी अनुज्ञानो विधि क्षेत्रप्रत्युपेक्षकोए आचार्यादि समक्ष क्षेत्रना गुणदोषोने निवेदन करवानो अने जवा लायक क्षेत्रनो निर्णय करवानो विधि विहार करवा अगाउ जेनी वसतिमा रह्या होय तेने पूछवानो विधि. अविधिथी पूछवामां दोष अने प्रायश्चित्तो. विहार करवा पहेला विधिपूर्वक वसतिना स्वामीने उपदेश आपवा पूर्वक विहारना समयनु सूचन गच्छवासीओए विहार करती वेळाए शुभ दिवस अने शुभ शकुन जोवानां कारणो शुभ शकुन अने अपशकुनो विहार करती वेळाए आचार्य शय्यातर-वसतिना मालीकने उपदेश देवो आदि विहार करती वेळाए आचार्य, बाळसाधु आदिना उपधिने कोण केवी रीते उपाडे ? अननुज्ञात क्षेत्रमा निवास विषयक प्रायश्चित्तो। गच्छवासीओनो पडिलेहेला क्षेत्रमा प्रवेश अने शुभाशुभ शकुनोनुं जोवू आचार्ये वसतिमा प्रवेश करवानो विधि वसतिमा प्रवेश कर्या पछी गच्छवासीओनी मर्यादा अने स्थापनाकुलोनी व्यवस्था वसतिमा प्रवेश कर्या पछी झोळी-पात्रां लीधेल अमुक साधुओने साथे लई आचार्य आदिनुं जिनचैत्यवंदनाः नीकळवू अने झोळी-पात्रां साथे लेवानां कारणो जिनचैत्योना वंदन निमित्त जतां घरजिनमंदिरना दर्शनार्थे जवु अने दानश्रद्धालु, धर्मश्रद्धालु, ईर्ष्यालु, धर्मपराङ्मुख आदि श्राद्धकुलो, ओळखq स्थापनाकुलादिनी व्यवस्था, तेनां कारणो अने वीरशुनिकानुं दृष्टान्त चार प्रकारना प्राघूर्णक-प्राहुणा साधुओ ४५६-५७ ४५७-५९ १५५५-६१ १५६२-६८ ४५९-६० ४६०-६१ १५६९-७२ १५७३-७६ ४६१-६२ १५७७-७८ ४६२ १५७९ ४६३ १५८०-८८ १५८९-९० ४६५-६६
SR No.002511
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 02
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorChaturvijay, Punyavijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year2002
Total Pages400
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size21 MB
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