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गाथा
२४१-४५
२४६-५६
२५६-५७
२५८-७२
२५८-७०
२५८-६४
२६५-७०
२७१-७५
२८८
बृहत्कल्पसूत्रनी पीठिकानो विषयानुक्रम |
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विषय
६ 'केन वा द्वार अनुयोगदाताना गुणो अने तेमनी योग्यता ७ 'कस्य वा' द्वार
अनुयोग कया सूत्रनो करवो ? अनुयोग दरेक सूत्रनो थइ शके छे पण अत्यारे कल्प - व्यवहारसूत्रनो अनुयोग प्रस्तुत छे. कल्प व्यवहार ए अंग के अंगो, श्रुतस्कंध के श्रुतस्कन्धो, अध्ययन के अध्ययनो, उद्देश के उद्देशा ए पैकी शुं छे ? एनुं निरूपण
८ अनुयोगद्वारद्वार
उपक्रम, निरोप, अनुगम अने नय ए चार अनुयोगनां द्वारो ए द्वारो निरूपण करवानुं कारण
९ भेदद्वार
उपक्रमद्वार
लौकिक उपक्रम
[ २५८-५९ – लौकिक द्रव्योपक्रम
२६० - लौकिक क्षेत्रोपक्रम २६१ – लौकिक कालोपक्रम २६२— लौकिक अप्रशस्त भावोपक्रम अने तद्विषयेणिका, ब्राह्मणी अने अमात्यनां दृष्टान्तो
२६३–६४—लौकिक प्रशस्त भावोपक्रम ]
छ प्रकार शास्त्रीय उपक्रम अने तेमां प्रस्तुत अध्ययननो यथायोग्य समवतार निक्षेपद्वार
२७६-३२९ १० लक्षणद्वार २७६-७७ अल्पग्रंथ, महार्थ आदि सूत्रनां लक्षणो
२७८-८१ अलीक, उपघातजनक, अपार्थक आदि सूत्रना बत्रीस दोषो २८२-८७ निर्दोष, सारवत्, हेतुयुक्त, अलङ्कृत आदि सूत्रना आठ गुणो अने बीजा विशेष गुणो
ओघनिष्पन्न, नामनिप्पन्न अने सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेपनुं खरूप
नाक्षर, अधिकाक्षर आदि उच्चारना दोषोथी रहित यथावस्थित सूत्र ने बोलवानी रीत
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पत्र
२७
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७६-७८
७८
७८-८३
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८०-८२
८२-८३
८३-१००
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