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गाथा
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बृहत्कल्पसूत्रनी पीठिकानो विषयानुक्रम ।
विषय भाषानुं निरुक्त अने तद्विषये प्रतिश्रुत-प्रतिशब्दनुं दृष्टान्त । १९७-९८ विभाषानुं निरुक्तं अने तद्विषये अभ्रपटलनुं दृष्टान्त १९९-२०० वार्तिक- निरुक्त अने तद्विषये चार मंखोनुं दृष्टान्त २०१ व्यक्तिकर अथवा वार्तिककारनी योग्यता । २०२-७
निक्षेप, निरुक्त, अनुयोगद्वार आदि द्वारा पदार्थनुं व्याख्यान
अने अंग उपांग आदि आगमोनुं निरूपण श्रीऋषभ तीर्थकरे कयु छे तेम ज श्रीमहावीरदेवे कयु छे ? के ते करतां जुदी रीते ? ए प्रश्ननो उत्तर अने ते विषये वर्तिनी-- गाडाना चीलानुं दृष्टान्त
६५-६७ २०८-३३ ४ विधिद्वार
६७-७२ २०८ विधिना एकाथिको
६७ २०९-१० बुद्धिशाळी अने मंदमति शिष्योने लक्षीने अनुयोग आपत्रानो
____ अर्थात् सूत्रनुं व्याख्यान करवानो विधि २११-१४ बुद्धिमान् अने मंदमति शिष्योने अनुयोग-सूत्रनी वाचना
आपवामाटे प्रतिपादन करेल भिन्न भिन्न विधिमाटे आचार्य उपर रागद्वेष आदि दोषोनो आरोप अने तेनुं समाधान
६७-६८ २१५-२३ अतिपरिणामक, अपरिणामक आदि एकांत अयोग्य शिष्योने
अनुयोग अर्थात् सूत्रार्थनी वाचना नहि आपवामां रागद्वेषनो अभाव अने तद्विषये दारु-लाकडं, धातु,
व्याधि, बीज, काटुक, लक्षण, स्वप्न आदि दृष्टान्तो । २२४-३३ कालान्तरमा योग्यता प्राप्त करी शके एवा शिष्योने क्रमसर
अनुयोग आपी योग्यता प्राप्त कराववामां राग-द्वेषनो अभाव अने तद्विषये अग्नि, बालक, ग्लान, सिंह, वृक्ष, करील, हस्ती, शरवेध, पत्रच्छेद्य, प्लवक, घटकार,
पटकार, चित्रकार, धमक आदि दृष्टांतो अने तेनो उपनय ७०-७२ २३४-४० ५ प्रवृत्तिद्वार
७२-७४ २३४-३७ अनुयोगनी प्रवृत्ति क्यारे थाय ? ते विषये चतुर्भंगी अने गो--गायनुं दृष्टान्त
७२ २३८-३९ उद्यमी आचार्य प्रमादी शिष्योने अनुयोगमा प्रवृत्त करे छे तद्वि
षये आर्यकालकनुं दृष्टान्त
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