________________
२६ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
भाव छ: प्रकार के होते हैं- १. औदयिक २. औपशमिक ३. क्षायिक ४. क्षायोपशमिक ५. पारिणामिक और ६. सान्निपातिक। औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सान्निपातिक भाव की कारणता
औदयिक भाव- 'उदए अट्ठण्हं कम्मपगडीणं उदएणं। से तं उदए। ५८ ज्ञानावरणादिक आठ कर्मप्रकृतियों के उदय से होने वाला भाव-पर्याय औदयिक भाव है। ज्ञानावरणादि आठ कर्मों का उदय होने पर तज्जन्य अवस्थाएँ उत्पन्न होने से कर्मोदय कारण है और तज्जन्य अवस्थाएँ कार्य हैं। इन भावों के निमित्त से जीव में निम्न कार्य सम्पन्न होते हैं - नारक आदि चार गतियाँ, क्रोधादि चार कषाय, तीन वेद, मिथ्यादर्शन, अज्ञान छ: लेश्याएँ, असंयम, संसारित्व, असिद्धत्व आदि।
जैसे कि गति नाम कर्मोदय के कारण मनुष्यादि गतियाँ, कषायचारित्रमोहनीय कर्मोदय के कारण क्रोधादि कषाय, नोकषाय चारित्रमोहनीय कर्मोदय के कारण वेदत्रिक, मिथ्यात्व मोहनीय के कारण मिथ्यादर्शन और ज्ञानावरण के कारण अज्ञान आदि विभिन्न कार्य जीव में निष्पन्न होते हैं। औदारिक, वैक्रिय, आहारक आदि शरीर भी औदयिक भाव से प्राप्त होते हैं।
औपशमिक भाव- ‘उवसमे मोहणिज्जस्स कम्मस्स उवसमेणं। से तं उवसमे अर्थात् मोहनीय कर्म के उपशम से होने वाले भाव को उपशम (औपशमिक) भाव कहते हैं। इन औपशमिकभाव रूप हेतु से सम्यक्त्व चारित्र आदि लब्धियाँ जीवों को प्राप्त होती हैं। दर्शन मोहनीय के उपशम से सम्यक्त्व लब्धि, चारित्र मोहनीय के उपशम से चारित्र लब्धि, मोहनीय कर्म के अन्य प्रभेदों के उपशम से क्रोधशमन, मानशमन आदि क्रियाएँ जीव मे निष्पन्न होती हैं।६१
क्षायिक भाव- 'खए अढण्हं कम्मपगडीणं खएणं। से तं खए। ६२ आठ कर्म प्रकृतियों के क्षय से होने वाला भाव क्षायिक है। क्षायिक भावरूप हेत (कारण) से केवलज्ञान-केवलदर्शन की प्राप्ति, अव्याबाध सुख की प्राप्ति, मोह का क्षय और अनन्तवीर्य प्राप्त होता है।६२ इस प्रकार क्षायिक भाव ही जीव के सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होने में निमित्त हैं।
क्षायोपशमिक भाव- 'खाओवसमे चउण्हं घाइकम्माणं खाओवसमेणं। तंजहा- १ णाणावरणिज्जस्स २. सणावरणिज्जस्स ३. मोहणिज्जस्स ४. अंतराइयस्स। से तं खाओवसमो।६४ ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय इन चारों घाति कमों के क्षयोपशम को क्षयोपशम भाव कहते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org