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उपसंहार ६२१ भारतीय चिन्तन में पूर्वकृत कर्मवाद की जड़े गहरी हैं। वैदिक वाङ्मय तथा बौद्ध और जैन ग्रन्थ इसके साक्षी हैं। कर्मवाद का प्रतिपादन करने वाले ग्रन्थ जैन दर्शन में स्वतन्त्र रूप से उपलब्ध हैं, किन्तु एकान्त कर्मवाद के पोषक ग्रन्थ न तो प्राप्त होते हैं और न ही उनका उल्लेख मिलता है। जैन दार्शनिकों ने पंच समवाय का प्रतिपादन करते हुए पूर्वकृत कर्मवाद को तो अंगीकार किया है, किन्तु उसकी एकान्त कारणता का प्रतिषेध किया है।
वैदिक संहिताओं में शुभ-अशुभ कर्मों को व्यक्त करने वाले शुभस्पतिः, धियस्पतिः, विचर्षणिः, विश्वचर्षणिः, 'विश्वस्य कर्मणो धर्ता' आदि शब्दों व वाक्यों का प्रयोग हुआ है। उपनिषदों में कर्मवाद पर दार्शनिक चिन्तन उपलब्ध है। बृहदारण्यकोपनिषद्, कठोपनिषद्, तैत्तिरीयोपनिषद् ऐतरेयोपनिषद्, छान्दोग्योपनिषद् आदि उपनिषदों में कर्म के अनुसार फल प्राप्ति की पुष्टि करने वाले वाक्य समुपलब्ध हैं। संन्यासोपनिषद् में कहा गया है- 'कर्मणा बध्यते जन्तर्विद्यया च विमुच्यते'।२४ ब्रह्मबिन्दूपनिषद् में मन को बंधन एवं मोक्ष का कारण निरूपित किया गया है- 'मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः। २५ उपनिषद् वाङ्मय में कर्म के बंधन पुनर्जन्म और मोक्ष आदि का सम्यक् प्रतिपादन है।
पुराणों में पूर्वकृत कर्म का दैव या भाग्य के रूप में निरूपण है। आदिकाव्य रामायण में कर्म सिद्धान्त पूर्णतः स्थापित है- 'यादृशं कुरुते कर्म तादृशं फलमश्नुते २६ महाभारत में धर्मानुकूल आचरण को पुण्य तथा उससे प्रतिकूल आचरण को पाप की संज्ञा दी गई है। पूर्वजन्म या पुनर्जन्म की मान्यता को भी महाभारत में स्थान दिया गया है।
भगवद्गीता में कर्म-संबंधी मान्यताओं को सहज ढंग से विवेचित एवं विश्लेषित किया गया है। गीता का कथन है कि फलेच्छा की आसक्ति रखने वाला पुरुष सदा कर्मों से बंधता है और अनासक्त भाव से कर्म करने वाला पुरुष नैष्ठिक शान्ति को प्राप्त करता है। गीता में मनुष्य को स्वतंत्र रूप से कर्म करने का अधिकारी तो माना गया है, किन्तु फल को ईश्वराधीन बताया गया है। 'वासांसि जीर्णानि यथविहाय २७ श्लोक पुनर्जन्म के सिद्धान्त को पुष्ट करता है।
संस्कृत साहित्य के विभिन्न ग्रन्थों में दैव, भाग्य या कर्म सिद्धान्त की पुष्टि हुई है। शुक्रनीति में पूर्वजन्म में किये हुए कर्म को भाग्य और इस जन्म में किये जाने कर्म को पुरुषार्थ कहा है।२८ स्वप्नवासवदत्त में 'कालक्रमेण जगतः परिवर्तमाना चक्रारपंक्तिरिव गच्छति भाग्यपंक्ति:२९ तथा मेघदूत में नीचैर्गच्छत्युपरि च
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