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________________ ५७६ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण पंचास्तिकाय पर जयसेनाचार्य (१२वीं शती) विरचित तात्पर्यवृत्ति में 'कालादिलब्धिवशात्' शब्द का प्रयोग हुआ है, जो कालादि पाँच कारणों की ओर संकेत करता है। .७१ आधुनिक युग में पंच समवाय का प्रतिष्ठापन पंच समवाय को आधुनिक युग में लगभग सभी जैन सम्प्रदायों के आचार्यों, संतों एवं विद्वत्जनों ने जैन दृष्टि से कारण-कार्य सिद्धान्त की व्याख्या में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। आज पंच समवाय शब्द जैन धर्म की सभी सम्प्रदायों में विश्रुत है। इस सिद्धान्त का आधुनिक युग में प्रतिपादन करने वाले आचार्यों, संतों एवं विद्वानों में कतिपय नाम इस प्रकार है- श्री तिलोकऋषि जी महाराज, शतावधानी श्री रत्नचन्द्र जी महाराज, आचार्य श्री विजयलक्ष्मीसूरीश्वर जी महाराज, मुनि न्यायविजय जी महाराज, श्रीकानजी स्वामी, आचार्य श्री जवाहरलाल जी महाराज, आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज, आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज, पं. श्रीसमर्थमल जी महाराज, दिवाकर श्री चौथमल जी महाराज, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज, क्षुल्लक श्री जिनेन्द्रवर्णी जी, उपाध्याय श्री अमरमुनि जी महाराज, आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी महाराज, आचार्य श्री विजयमुनि जी महाराज, आचार्य श्री विजयभुवनभानु सूरीश्वर जी महाराज, आचार्य श्री विजयरत्नसुन्दरसूरीश्वर जी महाराज, पं. सुखलाल संघवी, पं. बेचरदास दोशी, पं. दलसुख मालवणिया, श्रुतधर श्री प्रकाशमुनि जी महाराज, महोपाध्याय श्री मानविजय जी महाराज, श्री हरिभद्रसूरीश्वर जी महाराज, डॉ. सागरमल जैन, डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल आदि। यहाँ समस्त आचार्यों, मुनिवर्यों एवं विद्वत्जनों के नामों की गणना संभव नहीं, स्थूल रूप से ही यहाँ कुछ नाम गिनाए गए हैं। । यह कहा जा सकता है कि जैन कारणवाद के संदर्भ में पंच समवाय का कोई भी जैनाचार्य या जैन विद्वान् विरोध नहीं करते हैं । समर्थन में सबका साहित्य प्राप्त नहीं होता, क्योंकि साहित्य का लेखन कुछ ही आचार्यों, संतों एवं विद्वानों द्वारा किया जाता है, सबके द्वारा नहीं। हाँ, अपने प्रवचनों एवं प्रश्नोत्तरों के माध्यम से सब पंच समवाय का समर्थन करते हुए ही दृष्टिगोचर होते हैं, विरोध करते हुए नहीं। इसलिए ही यह कहा जा सकता है कि आधुनिक युग में पंच समवाय का सिद्धान्त सुप्रतिष्ठित एवं सर्व जैन सम्प्रदाय द्वारा मान्य सिद्धान्त है। यहाँ पर कुछ आचार्यों, संतों एवं विद्वानों के पंच समवाय विषयक विचार प्रस्तुत हैं तिलोकऋषि जी महाराज स्थानकवासी परम्परा के सन्त कवि श्री तिलोक ऋषि जी महाराज (संवत् १९३०) ने सवैया छन्द में निबद्ध काव्य के अन्तर्गत कालवादी, स्वभाववादी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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