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________________ जैनदर्शन की नयदृष्टि एवं पंच समवाय ५५१ विभिन्न आरकों का प्रभाव काल के दो विभाग हैं- अवसर्पिणी काल और उत्सर्पिणी काल। जिस काल में जीवों की शक्ति, अवगाहना, आयु क्रमश: घटती जाती है वह अवसर्पिणी काल कहलाता है और जिस काल में शक्ति, अवगाहना और आयु आदि में क्रमशः वृद्धि होती है, वह उत्सर्पिणी काल कहलाता है। अवसर्पिणी काल के समाप्त होने पर उत्सर्पिणी काल आता है और उत्सर्पिणीकाल के समाप्त होने पर अवसर्पिणी काल आता है। अवसर्पिणी काल में ६ आरकों का प्रभाव मनुष्यों पर निम्न रूप से होता है१. सुखम-सुखम :- अवसर्पिणी काल के पहले सुखम-सुखम आरे में मनुष्यों के शरीर की अवगाहना तीन कोस की होती है। आयु तीन पल्योपम की होती है तथा सभी मनुष्य वज्रऋषभनाराच संहनन तथा समचतुरस्र संस्थान के धारक होते हैं। एक साथ स्त्री और पुरुष का जोड़ा उत्पन्न होता है। उनकी इच्छाएँ दस प्रकार के कल्पवृक्षों से पूर्ण होती है। इस काल के सभी जीव मृत्यु के बाद देवगति को प्राप्त करते हैं। २. सुखम :- इस काल के प्रभाव से मनुष्य के शरीर की अवगाहना दो कोस तथा आयु दो पल्योपम रह जाती है। शेष स्थितियाँ पहले आरे के समान रहती हैं। ३. सुखम-दुखम :- इसमें एक कोस का देहमान और एक पल्योपम का आयुष्य शेष रहता है। शेष स्थितियाँ समान रहती है। इन तीनों आरों में तिर्यंच भी युगलिक होते हैं। इस काल में प्रथम तीर्थकर और चक्रवर्ती का जन्म होता है। ४. दुखम-सुखम :- इस काल में मनुष्य का देहमान क्रमशः घटते-घटते ५०० धनुष का और आयुष्य एक करोड़ पूर्व का रह जाता है। छठे संहनन और छ: संस्थान वाले तथा चार गतियों में जाने वाले मनुष्य होते हैं। इस काल में मनुष्य मोक्ष भी जा सकता है। २३ तीर्थकर, ११ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ वासुदेव, ९ प्रतिवासुदेव भी इसी आरे में होते हैं। इस आरे में युगलिक धर्म समाप्त हो जाता है। दुखम :- इस आरे में आयु १२५ वर्ष और अवगाहना सात हाथ की होती है। पाँचवें आरे में केवलज्ञान, मन:पर्याय ज्ञान आदि १० बातों का अभाव हो जाता है। अकाल, दुर्भिक्ष, चारित्रहीनता आदि अधार्मिकता बढ़ती जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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