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________________ F lix ५६३ ५६४ GFX ५६४ ५६५ ५६५ ५६५ ५६६ ५६६ ५६६ ५६७ → जैनदर्शन में पुरुष/पुरुषकार ( पुरुषार्थ ) की कारणता • पुरुष या जीव कों का कर्ता एवं भाक्ता • पुरुष के साथ पुरुषकार की कारणता स्वयंसिद्ध • तप-संयम में किया गया पराक्रम ही पुरुषार्थ • स्वयं का पुरुषार्थ ही मोक्ष का साधक • पुरुषार्थ : संयम, तप, निर्जरा आदि का आधार पुरुषार्थ की प्रमुखता के निदर्शन - तीर्थकर महावीर - गौतम आदि गणधर अन्तगडसूत्र में ९९ आत्माओं द्वारा पुरुषार्थ शालिभद्र, धन्ना अणगार, स्कन्धक ऋषि, धर्मरुचि अणगार आदि के उदाहरण » पंच समवाय में पाँच कारणों का समन्वय प्राचीन श्वेताम्बर जैनाचार्यों का योगदान - सिद्धसेनसूरि हरिभद्रसूरि शीलांकाचार्य अभयदेवसूरि मल्लधारी राजशेखरसूरि - उपाध्याय यशोविजय - उपाध्याय विनयविजय प्राचीन दिगम्बराचार्यों का योगदान • आधुनिक युग में पंच समवाय का प्रतिष्ठापन - तिलोकऋषि जी महाराज - शतावधानी श्री रत्नचन्द्रजी महाराज - आचार्य विजयलक्ष्मीसूरीश्वर जी महाराज ५६७ ५६७ ५६८ ५७० ५७३ ५७४ ५७४ ५७४ ५७५ ५७५ ५७६ ५७६ ५७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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