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पुरुषवाद और पुरुषकार ४९३ अनुमान समाप्त हो जायेंगे। जहाँ पर अग्नि के अदर्शन में धूम दिखता है, वहाँ शंका होगी कि यहाँ अभाव होने से अग्नि नहीं दिखायी देती है अथवा अनुपलब्धि लक्षण वाली होने से नहीं दिखती है। इस तरह धूम हेतु भी संदिग्ध व्यतिरेकी होने से साध्य का गमक नहीं हो सकेगा।
किन्त जिस सामग्री से धूम उत्पन्न होता हुआ रसोई में देखा था वह अपनी सामग्री का उल्लंघन नहीं कर सकता है ऐसा समझकर जहाँ पर्वत पर अग्नि नहीं दिखती है वहाँ भी उसका निश्चय हो जाता है। इसी प्रकार जो कार्य होता है वह कर्ता, करण आदि पूर्वक होता है, ऐसा अनुमान सत्य है। इस हेतु में अतिप्रसंग नहीं है। ३४
प्रभाचन्द्र- धूमादि सभी हेतुओं को संदिग्धानैकान्तिक मानना अज्ञानता है। क्योंकि सामान्य कार्य तो सामान्य कारण के साथ ही अविनाभावी हुआ करता है, जैसे सामान्य धूम सामान्य अग्नि का अविनाभावी होता है। जो घटादि विशेष कार्य होता है उसका विशेष कारण के साथ अविनाभाव निश्चित होता है, जैसे चंदन संबंधी विशेष धूम का विशेष अग्नि के साथ अविनाभाव निश्चित होता है। इस प्रकार सामान्य कार्य सामान्य कारण का और विशेष कार्य विशेष कारण का अनुमापक होता है, ऐसा सिद्धान्त निश्चित होता है।१३५
इसके बावजूद भी सामान्य कार्य को विशेष कारण का अनुमापक माना जायेगा तो महानसादि में विशेष धूम तात्कालिक अग्नि का अविनाभावी होता हुआ जानकर भी उसी समय गोपाल घटिकादि में सामान्य धूम से उस अग्नि का अनुमान होने लगेगा।
ईश्वरवादी- अदृष्ट चेतन से अधिष्ठित होकर कार्य में प्रवृत्त होता है क्योंकि वह विवेकशून्य अचेतन है, जैसे तंतु आदि पदार्थ।१३६ वार्तिककार ने भी ईश्वरसिद्धि के लिए दो प्रमाण उपस्थित किए है१. महाभूत आदि कार्य चेतन से अधिष्ठित होकर प्राणियों के सुख-दुःख का
निमित्त बनता है, क्योंकि वह रूपादिमान है। जैसे वाद्य चेतनाधिष्ठित होकर
ही बजने का कार्य करता है। २. पृथ्वी आदि महाभूत बुद्धिमान कारण से अधिष्ठित होकर अपने धारण
आदि क्रियाओं में प्रवृत्त होते हैं, क्योंकि वे अनित्य हैं, जैसे कुल्हाड़ी आदि अपने काटने रूप क्रिया में देवदत्त से अधिष्ठित होकर ही प्रवृत्त होता है। जो बुद्धिमान कारण है वही ईश्वर है। इन दो प्रमाणों से ईश्वर की सिद्धि होती है।२३७
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