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४९२ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
समस्त पदार्थ एक साथ हो जायेंगे। क्योंकि उसमें पूर्ण कारण विद्यमान है। यदि इसमें सहकारी कारण की अपेक्षा रहती है तो नित्य ईश्वर में सहकारी
कारण की अपेक्षा संगत नहीं है।१२९ प्रभाचन्द्राचार्य द्वारा ईश्वरवाद का खण्डन
प्रभाचन्द्राचार्य(११वीं शती) ने 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' के अन्तर्गत ईश्वरवाद का पूर्वपक्ष रखकर उसके तर्कों को अपने बुद्धिबल से खण्डित कर निम्न प्रकार प्रस्तुत किया है
ईश्वरवादी का मत- न्याय और वैशेषिक दर्शन के अनुसार सर्वज्ञ कों का नाश करके नहीं बनता, अपितु एक अनादि महेश्वर है वही सर्वज्ञ है। उसकी सर्वज्ञता जगत् की रचना से सिद्ध होती है- "क्षित्यादिकं बुद्धिमद्धेतुकं कार्यत्वात्, यत्कार्य तद्बुद्धिमद्धेतुकं दृष्टम् यथा घटादि, कार्य चेदं क्षित्यादिकम्, तस्मादबुद्धिमद्धेतुकम् । १३° पृथ्वी, पर्वत, वृक्षादि सभी पदार्थ किसी बुद्धिमान के द्वारा निर्मित है, क्योंकि वे कार्य हैं, जैसे घटादि कार्य हैं। पृथ्वी आदि हमेशा से रहते हैं तो उसका निर्माता भी हमेशा से रहना चाहिए। इस अनुमान से अनादि ईश्वर की सिद्धि होती है। जैनादि यह शंका करे कि कर्ता सशरीरी है वैसे ही ईश्वर होना चाहिए, तो यह उचित नहीं है, क्योंकि कार्य करने के लिए शरीर की जरूरत नहीं होती, अपितु ज्ञान, इच्छा और प्रयत्न की जरूरत होती है।१३९
प्रभाचन्द्र द्वारा निरसन- ज्ञान, चिकीर्षा और प्रयत्न-आधारता, ये तीन प्रकार की कर्तृता है। इस कर्तृत्व के लिए शरीर होना या नहीं होना जरूरी नहीं है, आपका यह कथन अयुक्त है। क्योंकि शरीर के अभाव में कर्तृत्व का आधार होना असंभव है, जैसे मुक्तात्मा में शरीर नहीं होने से कर्तृत्वाधार नहीं है। कार्यों की उत्पत्ति में आत्मा समवायी कारण है, आत्मा और मन का संयोग होना असमवायी कारण है
और शरीरादिक निमित्त कारण है। इन तीन कारणों के अभाव में कार्य की उत्पत्ति नहीं होती ऐसा आप स्वयं मानते हैं। अतः आपका मत स्ववचनों से ही खण्डित
होता है।१३२
ईश्वरवादी- पृथ्वी आदि से उत्पन्न होने वाले स्थावर आदि का कर्ता ईश्वर है। तब जैन शंका करते हैं कि इस बुद्धिमान कर्ता की अनुपलब्धि अभाव के कारण नहीं हो रही है या सद्भाव होते हुए भी अनुपलब्धि लक्षण वाला होने से नहीं हो रही है। इस प्रकार संदेह होने से कार्यत्व हेतु संदिग्ध विपक्ष व्यावृत्ति वाला होकर असिद्ध हो जाता है।३२ ईश्वरवादी कहते हैं कि यह विचार असंगत है, क्योंकि इस तरह सभी
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