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________________ liv ४१७ ४१७ ४१८ > जैनवाङ्मय में एकान्त कर्मवाद एवं उसका खण्डन • आचारांग सूत्र एवं उसकी शीलांक टीका में कर्मवाद • द्वादशारनयचक्र में कर्मवाद का उपस्थापन एवं प्रत्यवस्थान • शास्त्रवार्ता समुच्चय एवं उसकी टीका में कर्मवाद का निरसन • सन्मतितर्क टीका में कर्मवाद का निरूपण एवं निरसन > निष्कर्ष ४२१ ४२४ ४२६ ४६० ४६२ षष्ठ अध्याय : पुरुषवाद और पुरुषकार ४५९-५४२ » उत्थापनिका ४५९ • पुरुषवाद से पुरुषार्थवाद तक ४५९ • पुरुषकारणता : पुरुषवाद, ईश्वरवाद एवं पुरुषार्थ के रूप में । ४६० • पंच समवाय में पुरुषकारवाद/पुरुषार्थवाद का औचित्य पुरुषवाद - पुरुषवाद का प्रतिपादन ४६२ • वेद में पुरुषवाद की चर्चा • उपनिषद् में पुरुषवाद का प्रतिपादन • पुराणों में पुरुषवाद पर विचार ४६६ • महाभारत और गीता में पुरुषवाद • रामायण में पुरुषवाद • मनुस्मृति में सृष्टिरचना • जैन ग्रन्थों में पुरुषवाद का निरूपण एवं निरसन - सूत्रकृतांग सूत्र में सृष्टि-रचना विषयक विभिन्न मत द्वादशारनयचक्र में पुरुषवाद का निरूपण. ४६४ ४६८ ४६८ ४६९ ४७० ४७० ४७० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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