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पुरुषवाद और पुरुषकार ४६१ से किया है, किन्तु जैनाचार्यों को एक पुरुष (परमात्मा) के द्वारा सृष्टि की रचना मान्य नहीं है। वे तो सृष्टि को अनादि अनन्त मानते हैं। कालचक्र से होने वाले परिवर्तन को अवश्य स्वीकार करते हैं। जैनदर्शन में ऐसा कोई परम पुरुष भी नहीं है जो एक ही हो, नित्य हो, सर्वव्यापी हो एवं सृष्टि का कर्ता हो। न्याय, वैशेषिक आदि दार्शनिक ईश्वर को सृष्टिकर्ता मानते हैं। जैन दार्शनिकों ने पुरुषवाद का खण्डन करने के साथ ईश्वरवाद का भी खण्डन किया है। अत: उत्तरवर्ती आचार्यों ने पुरुष अर्थात् आत्मा के द्वारा की जाने वाली क्रियाओं को अर्थात् पुरुषकार को कारण-समवाय में स्थान दिया है। पंच समवाय में पुरुषकारवाद/पुरुषार्थवाद का औचित्य
जैन दृष्टि से पंच कारण समवाय में 'पुरुषकार' या 'पुरुषार्थ' का समावेश ही समुचित प्रतीत होता है। क्योंकि जैन दर्शन पुरुषार्थवादी दर्शन है। श्रमणसंस्कृति का धर्म होने से इसमें श्रम अथवा पुरुषार्थ को महत्त्व प्राप्त है। 'पुरुषवाद' को जैन दर्शन के पंच कारण समवाय में स्थान देना युक्ति संगत प्रतीत नहीं होता, क्योंकि पुरुषवाद में परम पुरुष से सृष्टि का सर्जन स्वीकार किया गया है अथवा उसके अन्य विकसित रूपों में ब्रह्म या ईश्वर को सृष्टि का कर्ता अंगीकार किया गया है, जो जैन दर्शन के अनुसार मान्य नहीं हो सकता। जैन दर्शन किसी पुरुष, ब्रह्म या ईश्वर को सृष्टिकर्ता नहीं मानता। अत: आधुनिक जैनाचार्य पंच कारण समवाय में काल, स्वभाव, नियति एवं पूर्वकृत कर्म के साथ पुरुषार्थ को स्थान देते हैं। जैनदर्शन आत्मवादी एवं कर्मवादी है, उसमें पुरुषार्थ/श्रम/उद्यम का महत्त्व पूर्णत: निर्विवाद है। यही नहीं, उसमें पुरुषार्थ की प्रधानता भी है। इसलिए पंच कारण समवाय में उसका स्थान होना सर्वथा उपयुक्त है। हाँ, 'पुरुष' शब्द का आत्मा अर्थ ग्रहण करके उसको ही कर्ता-विकर्ता मानते हुए कथंचित् पुरुषवाद नाम स्वीकार किया जा सकता है।
प्रस्तुत अध्याय को दो भागों में विभक्त किया जा रहा है। पूर्वार्द्ध भाग में 'पुरुषवाद' की चर्चा की जाएगी तथा उत्तरार्द्ध भाग में 'पुरुषकार' या 'पुरुषार्थ' पर विचार किया जाएगा।
पुरुषवाद सन्मतितर्क में 'पुरिसे' (पुरुष) शब्द का प्रयोग होने से इस अध्याय के पूर्वार्द्ध में पुरुषवाद पर चिन्तन अभीष्ट है। प्रसंगतः ब्रह्मवाद एवं ईश्वरवाद पर भी विचार किया जाएगा। 'पुरुषवाद' की अवधारणा ही ब्रह्मवाद एवं ईश्वरवाद के रूप में विकास को प्राप्त हुई है।
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