________________
४६२ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
पुरुष सूक्त के अन्तर्गत वेदों में पुरुषवाद की चर्चा समुपलब्ध होती है । ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद तीनों में पुरुष सूक्त मिलता है । " यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते', 'पूर्ण पुरुषेण सर्वम्" उपनिषद् वाक्य ब्रह्म और परम पुरुष की कारणता स्थापित करते हैं । पुराण साहित्य में ब्रह्मा, विष्णु और महेश से सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन है। वैदिक साहित्य ही नहीं, अपितु संस्कृत साहित्य भी पुरुषवाद की चर्चा से अछूता नहीं है। रामायण, महाभारत, मनुस्मृति आदि प्रसिद्ध संस्कृत रचनाओं में ब्रह्मा से जगदुत्पत्ति का उल्लेख मिलता है।
जैन दार्शनिकों को पुरुष की कारणता स्वीकार्य नहीं है। अतः मल्लवादी क्षमाश्रमण, अभयदेवसूरि, शीलांकाचार्य, विशेषावश्यकभाष्यकार आदि दिग्गज आचार्यों ने पुरुषवाद का सुन्दर रीति से उपस्थापन कर प्रबल तर्कों से उसका खण्डन प्रस्तुत किया है।
पुरुषवाद का प्रतिपादन
वेद में पुरुषवाद की चर्चा
पुरुषवाद की चर्चा ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद तीनों में 'पुरुष सूक्त' के रूप में सम्प्राप्त होती है। ऋग्वेद (मण्डल १०) और अथर्ववेद ( काण्ड १९) के पुरुषसूक्त में १६ - १६ तथा यजुर्वेद (अध्याय ३९ ) के पुरुषसूक्त में २२ मंत्र हैं। तीनों ही सूक्तों का अभिप्राय समान है। ऋग्वेद के १६ मंत्र तो यजुर्वेद में ज्यों की त्यों प्राप्त होते हैं, ६ मन्त्र नये हैं तथा ऋग्वेद के वे १६ मंत्र अथर्ववेद में मामूली पाठभेद के साथ प्राप्त होते हैं।
सृष्टि रचना हेतु एक ऐसे पुरुष की कल्पना वेद में प्राप्त होती है, जो सहस्र शिरों वाला, सहस्र भुजाओं वाला, सहस्र नेत्रों वाला और सहस्र पैरों वाला है। वह सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त किए हुए है।' यह सर्वव्यापक पुरुष आहार करने वाले चेतन और अनाहारी जड़ जगत् में विविध प्रकार से व्याप्त है। ' वेद में इस पुरुष को अत्यधिक महिमाशाली माना गया है। अतः कहा है
'पुरुष एवेदं सर्व यद् भूतं यच्च भाव्यम् ।
उतामृतत्वस्येश्वरो यदन्येनाभवत् सह । । *
अर्थात् जो कुछ विद्यमान है, जो कुछ उत्पन्न हुआ और उत्पन्न होने वाला है, जो अमरपन अर्थात् मोक्ष सुख और उससे भिन्न दुःख का भी शासक है वह पुरुष
ही है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org