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पूर्वकृत कर्मवाद ४४१ १२५. 'मीमांसा दर्शन' भूमिका पृ. १३ १२६. 'मीमांसा दर्शन' भूमिका पृ. १३ १२७. 'चेतनाहं भिक्खवे कम्मं ति वदामि। चेतयित्वा हि कम्मं करोति कायेन वाचाय
मनसा वा' -अंगुत्तरनिकाय उद्धृत 'बौद्ध दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन' भाग
प्रथम, पृ. ४६३ १२८. डॉ.भागचन्द्र जैन भास्कर, 'जैन-बौद्ध दर्शन में कर्मवाद', 'जिनवाणी-कर्म
सिद्धान्त विशेषांक', सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर, पृ. १६४ १२९. 'भारतीय दर्शन' -डॉ. नंदकिशोर देवराज, उत्तरप्रदेश, हिन्दी संस्थान, लखनऊ,
पंचम संस्करण, १९९९, पृ. १७१ १३०. भारतीय दर्शन-डॉ. नन्दकिशोर देवराज, पृ. १६६ १३१. चूल-कम्म विभंग-सुत्तन्त-मज्झिमनिकाय ३.४.५ उद्धृत 'बौद्धदर्शन तथा अन्य
भारतीय दर्शन' पृ. ४७५ १३२. 'बौद्ध दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन' मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली पृ. ४७५ १३३. चूल कम्म विभंग-सुत्तन्त (मज्झिमनिकाय ३.४.५) १३४. महाकम्म विभंग-सुत्तन्त (मज्झिमनिकाय, ३.४.६) १३५. सालेय सुत्तन्त (मज्मिमनिकाय १.५.१.), वेरंजक सुत्तन्त (मज्झिमनिकाय
१.५.२) १३६. विभंग पृ. ४२६, विसुद्धिमग्ग (कंखावितरणविसुद्धिनिद्देसो) में उद्धत-'बौद्ध
दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन पृ. ४७८ १३७. वेदान्त दर्शन- अध्याय ३, पाद २, सूत्र ३८ १३८. 'श्रुत्वाच्च'- वेदान्त दर्शन ३.२.३९ १३९. योगसूत्र २.३ १४०. क्लेश मूलः कर्माशयो दृष्टादृष्टजन्मवेदनीयः - योगसूत्र २.१२ १४१. 'तस्यहेतुरविद्या' - योगसूत्र २.२४ १४२. 'सति मूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगाः' - योगसूत्र २.१३ १४३. 'क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्टः पुरुषविशेषः ईश्वरः' - योगसूत्र १.२४ १४४. कर्माशुक्लाकृष्णं योगिनस्त्रिविधमितरेषाम्।
ततस्तद्विपाकानुगुणानामेवाभिव्यक्तिर्वासनानाम्।। योगसूत्र ४.७,८
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