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________________ पूर्वकृत कर्मवाद ४३७ ५३. कर्मदायादवॉल्लोकः कर्मसंबंधलक्षणः। कर्मणिचोदयन्तीह यथान्योन्यं तथा वयम्।। यथा मृत्पिण्डतः कर्ता कुरुते यद् यदिच्छति। एवात्मकृतं कर्म मानवः प्रतिपद्यते।। यथाच्छायातपौ नित्यं सुसम्बद्धौ निरन्तरम्। तथा कर्म च कर्ता च सम्बद्धावात्मकर्मभिः।। ___ -महाभारत, अनुशासन पर्व, अध्याय १, श्लोक ७३-७८ ५४. शुभैलभति देवत्वं व्यामिश्रर्जन्म मानुषम्। अशुभैश्चाप्यधो जन्म कर्मभिलभते श्वशः।। ___-महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय ३२९ श्लोक २५ ५५. आदिपर्व, छठा अध्याय, दृष्टव्य कर्म की हिन्दू अवधारणा के पृ. १३८ धर्मेस्थिता सत्त्ववीर्या धर्मसेतुवटारका। त्यागवाताध्वगा शीघ्रा नौस्तं संतारयिष्यति।। -महाभारत, शान्ति पर्व, अध्याय ६६, श्लोक ३७ ५७. महाभारत शान्ति पर्व के मोक्षधर्म प्रकरण में, अध्याय १९४, श्लोक ४६ गीता रहस्य पृष्ठ ५५-५६, दृष्टव्य 'कर्म की हिन्दू अवधारणा, पृ. १६९' ५९. 'शरीरवाङ्मनोभिर्यत्कर्म प्रारभते नरः" -गीता १८१५ गीता १८.१८ का रामानुज भाष्य गीता २.४७ ६२. (१) आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते। योगारुढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते।। -गीता ६.३ (२) ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परंतप। कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः।। -गीता १८.४१ ६३. गीता ४.१६ ६४. गीता १६.५ ६५. दम्भो दर्पोऽतिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च। अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ संपदमासुरीम्।। -गीता १६.४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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