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३९८ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
अदृष्ट फल के लिए दानादि क्रिया करने वाला व्यक्ति शायद ही कोई हो। दृष्ट यश की प्राप्ति के लिए दानादि जैसी क्रियाओं को करने वाले बहुत लोग हैं और बहुत कम लोग अदृष्ट कर्म के निमित्त दानादि करते होंगे। अतः सचेतन की सभी क्रियाओं का फल दृष्ट ही मानना चाहिए। भगवान महावीर- कृषि आदि क्रियाओं का दृष्ट के अतिरिक्त अदृष्ट फल भी होता है। वे लोग चाहे अदृष्ट अधर्म के लिए अशुभ क्रियाएँ न करते हों, फिर भी उन्हें उनका फल मिले बिना नहीं रहता। अन्यथा इस संसार में अनन्त जीवों का अस्तित्व घटित नहीं हो सकता, क्योंकि तुम्हारे मतानुसार पाप कर्म करने वाले भी नए कर्मों का ग्रहण नहीं करते, फिर तो मृत्यु के बाद उन्हें मोक्ष प्राप्त होना चाहिए। किन्तु हम विश्व में अनन्त जीव देखते हैं
और उनमें भी अधर्मात्मा ही अधिक हैं। अत: मानना होगा कि समस्त क्रियाओं का दृष्ट के अतिरिक्त अदृष्ट कर्म रूप फल भी प्राप्त होता है।२४८
अग्निभूति- दानादि क्रिया के कर्ता को धर्म रूप अदृष्ट फल मिल सकता है क्योंकि वह ऐसे फल की कामना करता है। किन्तु जो कृषि आदि क्रियाएँ करते हैं वे तो द्रष्ट फल की ही अभिलाषा रखते हैं। फिर उन्हें भी अदृष्ट फल कर्म की प्राप्ति क्यों हो?२४९ भगवान महावीर- तुम्हारा कथन अयुक्त है। क्योंकि कार्य का आधार उसकी सामग्री होती है। मनुष्य की इच्छा हो या न हो, किन्तु जिस कार्य की सामग्री होती है, वह कार्य अवश्य उत्पन्न होता है। बोने वाला किसान यदि अज्ञानवश भी गेहूँ के स्थान पर कोदरा (कोदु) बो दे और उसे हवा, पानी आदि अनुकूल सामग्री मिले तो कृषक की इच्छा-अनिच्छा की उपेक्षा कर कोदरा उत्पन्न हो ही जायेंगे। इसी प्रकार हिंसा आदि कार्य करने वाले मांसभक्षक चाहें या न चाहें किन्तु अधर्म अदृष्ट कर्म उत्पन्न होता ही है। दानादि क्रिया करने वाले विवेकशील पुरुष यद्यपि फल की इच्छा न करें तथापि सामग्री होने पर उन्हें धर्म रूप फल मिलता ही है।२५०
अत: यह बात सिद्ध होती है कि शुभ अथवा अशुभ सभी क्रियाओं का शुभ अथवा अशुभ अदृष्ट फल होता ही है। अन्यथा इस संसार में अनन्त संसारी जीवों की सत्ता ही शक्य नहीं है। कारण यह है कि अदृष्ट कर्म के अभाव में सभी पापी अनायास मुक्त हो जाएँगे; क्योंकि उनके इच्छित न होने के कारण मृत्यु के बाद संसार
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