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नियतिवाद ३०५ "जिस नियम में कोई अपवाद नहीं होता, वह है नियति। जिसमें अपवाद होता है, वह नियति नहीं, सामान्य नियम होता है। नियति है सार्वभौम नियम, यूनिवर्सल लॉ । हमारे जीवन चक्र के हजारों शाश्वत नियम है। जगत् के भी हजारों शाश्वत नियम हैं। उनमें अपवाद नहीं होता । मृत्यु एक नियति है। क्या कोई इसका अपवाद बना है आज तक? कोई नहीं बना और न बन सकेगा। जो जन्मता है, वह मरता है। जिसने जन्म लिया है, वह आज या कल अवश्य मरेगा। जो जीवनधर्मा है वह मरणधर्मा है। यह नियति है, निश्चित है। जीवन के साथ मृत्यु जुड़ी हुई है। गीता में कहा है- 'जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्भुवं जन्म मृतस्य च।' जो जन्मा है उसकी मृत्यु निश्चित है और जो मरे है उनका जन्म भी निश्चित है। जन्म और मरण दोनों अनिवार्य नियति हैं। प्रत्येक प्राणी की यह नियति है। यदि हम 'मरण' शब्द को छोड़ दें तो अचेतन में भी नियति है। कोई भी अचेतन द्रव्य शाश्वत नहीं है। वह बदलता है, बदलता रहता है। एक परमाणु भी एक रूप में नहीं रहता । उसे बदलना ही पड़ता है । चेतन जगत् में जन्म और मृत्यु होती है और अचेतन जगत् में जन्म और मृत्यु न कहकर उत्पाद और व्यय कहा है। इसका अर्थ है उसका एक रूप बनता है, नष्ट हो जाता है। एक रूप का उत्पाद कहा है और दूसरे का व्यय होता है, होता है।
उत्पाद और व्यय का चक्र, जन्म और मृत्यु का चक्र, रूपान्तरण का चक्र नियति है। वे शाश्वत नियम, जो चेतन और अचेतन पर घटित होते हैं, उन सारे नियमों का अर्थ है नियति । नियतिवाद बहुत बड़ी बात है । नियतिवादी जो कहते हैंजैसा नियति में है, वैसा होगा, यह त्रुटिपूर्ण प्ररूपणा है। इसमें अनेक बड़े-बड़े दार्शनिक चूके हैं। उन्होंने नियति सार्वभौम नियम को सामान्य नियम के रूप में स्वीकार कर लिया, इसीलिए नियति का सिद्धान्त भ्रामक बन गया।
नियति के वास्तविक अर्थ को समझने के लिए हमें यह मानना पड़ेगा कि नियम दो प्रकार के होते हैं
१. मनुष्यों द्वारा कृत नियम
२. सार्वभौम नियम
दूसरा
नाश
मनुष्यों द्वारा कृत नियम नियति नहीं है। नियति वह है जो प्राकृतिक नियम है, स्वाभाविक और सार्वभौम नियम है। जो नियम जागतिक है, सब पर लागू होता है, वह है नियति। हम नियति के पंजे से नहीं छूट सकते । प्रत्येक व्यक्ति नियति से जुड़ा हुआ है, नियति के साथ चल रहा है। कोई भी उसका अपवाद नहीं है । २४९
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