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नियतिवाद २७९ प्राणियों के सुख-दुःख आदि उनके उद्योग द्वारा किए हुए नहीं, किन्तु उनकी नियति द्वारा किए हुए हैं, इसलिए वे सांगतिक कहलाते हैं।
जो सुख-दुःखादि की प्राप्ति होती है वह पुरुषकारकृत कारण से जन्य नहीं है। यदि पुरुषकार कृत सुखादि का अनुभव हो तो सेवक, वणिक्, कर्षक आदि के द्वारा समान पुरुषार्थ करने पर फल-प्राप्ति में विसदृशता नहीं होनी चाहिए, किन्तु विसदृशता देखी जाती है तथा कभी-कभी फल की अप्राप्ति भी देखी जाती है। किसी के सेवा आदि व्यापार न करने पर भी विशिष्ट फल की प्राप्ति देखी जाती है। इसलिए पुरुषकार से कुछ भी प्राप्त नहीं होता। तो फिर किससे प्राप्त होता है? नियति से ही सब कुछ प्राप्त होता है। काल भी कार्य का कर्ता नहीं है, उसके एक रूप होने के कारण से जगत् में फल की विचित्रता उत्पन्न नहीं हो सकती। कारण का अभेद होने पर भी कार्य का भेद देखा जाता है। कारण का भेद नहीं होने से सुख-दुःख ईश्वरकर्तृक भी नहीं है। स्वभाव को भी कारण नहीं माना जा सकता, वह पुरुष से भिन्न है या अभिन्न? यदि भिन्न है तो पुरुष के आश्रित सुख-दुःख को करने में समर्थ नहीं हो सकता। यदि अभिन्न है तो वह पुरुष ही होगा और उसकी अकर्तकता कह दी गई है। कर्म की भी सुख-दुःख के प्रति कर्तृता संभव नहीं है। क्योंकि उसके भी दो विकल्प होते हैं वह कर्म पुरुष से भिन्न है या अभिन्न। यदि अभिन्न है तो पुरुष मात्र होने की आपत्ति आती है। यदि भिन्न है तो वह सचेतन है या अचेतन? यदि सचेतन है तो एक ही शरीर में दो चैतन्य की आपत्ति आती है। यदि अचेतन है तो पाषाण खण्ड आदि की भाँति सुख-दुःख को उत्पन्न करने में उसका कर्तृत्व नहीं हो सकता।१४९
सुख और दुःख दोनों ही सैद्धिक और असैद्धिक दोनों प्रकार के होते हैं। फूलमाला, चन्दन और सुन्दर स्त्री आदि के उपभोगरूप सिद्धि से उत्पन्न सुख 'सैद्धिक' है तथा चाबुक से मारना और गर्म लोहे से दागना आदि सिद्धि से उत्पन्न दुःख 'सैद्धिक' है। जिसका बाह्य कारण ज्ञात नहीं है ऐसा जो आनन्द रूप सुख मनुष्य के हृदय में अचानक उत्पन्न होता है वह असैद्धिक सुख है तथा ज्वर, शिरः पीड़ा और शूल आदि दुःख जो अपने अंग से उत्पन्न होते हैं वे असैद्धिक दुःख हैं। ये दोनों ही सुख और दुःख पुरुष के अपने उद्योग से उत्पन्न नहीं होते हैं तथा ये काल आदि किसी अन्य पदार्थ के द्वारा भी उत्पन्न नहीं किए जाते हैं। इन दोनों प्रकार के सुख-दुःखों को प्राणी अलग-अलग भोगते हैं। ये सुख-दुःख प्राणियों को क्यों होते हैं, इस विवादास्पद विषय में नियतिवादियों का यह मन्तव्य है- 'भाग्यबल से शुभ अथवा अशुभ जो भी मिलने वाला होता है वह मनुष्य को अवश्य प्राप्त होता है। महान् प्रयत्न करने पर भी जो होनहार नहीं है वह नहीं होता है और जो होने वाला है उसका नाश नहीं होता है।५०
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