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नियतिवाद २७५ गया। मदिरापान के कारण द्वारकापुरी का दहन होगा, ऐसा सुनकर श्री कृष्ण जी ने द्वारका को बचाने के अनेक प्रयत्न किये फिर भी होनहार के वश द्वारकापुरी जल ही गई, बची नहीं।
परशुराम ने अपने फरसे के द्वारा लाखों क्षत्रियों को मारा, परन्तु अन्त में संभु अर्थात् सुभूम चक्रवर्ती के द्वारा परशुराम मारा गया। यह सब नियति के माहात्म्य से ही संभव हो पाया। सुभूम चक्रवर्ती ने सातवाँ खण्ड साधने का निश्चय किया, उस समय सेनापति एवं सेवा में रहने वाले देवताओं ने प्रार्थना की कि छः खण्ड के ऊपर सातवें खण्ड को साधने की मर्यादा चक्रवर्ती की नहीं है, अर्थात् सातवें खण्ड को जीतने की इच्छा मत करो, परन्तु वह बात न मानी, जिससे होनहार के कारण उन्हें समुद्र में गिरकर मरना पड़ा। ब्रह्मदत्त नाम के चक्रवर्ती थे, उनकी भी सेवा में देवता रहते थे। किन्तु होनहार के कारण उन्हें भी सोलह वर्ष भटकना पड़ा।
___ यहाँ नियति का महत्त्व एक दृष्टान्त देकर दिखलाया गया है। एक पक्षी उड़कर आकाश मार्ग से जा रहा था, तभी पक्षियों को मारने वाले सीचानक पक्षी ने उसको देखा और आक्रमण कर दिया। उसी समय पक्षी को मारने के लिए शिकारी ने बाण छोड़ा, अकस्मात् साँप ने उस शिकारी को डस खाया। डसने के कारण निशाना चूक गया तथा सीचानक पक्षी मारा गया। अत: जिस पक्षी पर शिकारी ने निशाना लगाया था, वह तो उड़ गया, कुछ भी चोट नहीं आई, बदले में सीचानक पक्षी मारा गया। अर्थात् नियति के कारण विघ्न भी टल जाते हैं।
भवितव्यता के वश होकर रण संग्राम में जाकर कितने ही मरण को प्राप्त होते हैं एवं कितने ही बच जाते हैं। नियतिवश होकर ही धीर आदमी को साहस उत्पन्न नहीं होता। ऊँट, घोड़े, खरगोश इत्यादि के नियति के कारण ही शृंग नहीं आते एवं अभवी को मोक्ष प्राप्त नहीं होता। नियति के कारण पत्थर पानी पर नहीं तैरता है। जन्म, जरा, मरण, व्याधि, रोग, शोक, योग, दुःख, सुख एवं भूख आदि नियति के बल पर ही होते हैं। दिगम्बर ग्रन्थों में नियति की चर्चा स्वयम्भूस्तोत्र में नियति
नियति के संबंध में समन्तभद्र (छठी शती) का यह श्लोक प्रसिद्ध है
"अलझ्याशक्तिर्भवितव्यतेयं हेतुद्वयाविष्कृतकार्यलिङ्गा। अनीश्वरो जन्तुरहक्रियातः संहत्य कार्येष्विति साध्ववादीः।। '५४३
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