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नियतिवाद २५१ पंचतन्त्रकार कहते हैं कि जिसकी भवितव्यता नहीं होती वह कार्य कभी नहीं होता तथा जो भवितव्य है वह बिना यत्न किए ही हो जाता है। जिस वस्तु की भवितव्यता नहीं होती है वह हस्तगत होकर भी चली जाती है।६० यह विधि की विडम्बना ही है कि ५० योजन दूर से पक्षी भोग्य वस्तु को तो देख लेता है किन्तु नजदीक के जाल को नहीं देख पाता। राजतरंगिणी में नियति की महत्ता
राजतरंगिणी में कहा है- किसी पक्षी की पूँछ में लगी आग जिस प्रकार उसके भागने से शान्त नहीं होती, उसी प्रकार मनुष्य की भी भवितव्यता उसके पलायन करने से पीछा नहीं छोड़ती। जिस प्राणी को नियति द्वारा निर्धारित जो भोग भोगने हैं, वे प्रचण्ड अग्नि, विष, शस्त्र, बाण प्रयोग किसी गड्ढे में कूद जाने, अभिचार क्रिया करने तथा भोगाधीन प्राणियों के वध करने से भी टाले नहीं जा सकते हैं।६१
___अतः कवि कल्हण ने ठीक ही कहा है- 'शक्तो न कोऽपि भवितव्यविलंघनायाम् २ अर्थात् भवितव्यता का उल्लंघन करने का सामर्थ्य किसी में नहीं है। काव्यप्रकाश में नियति
नियति शब्द का प्रयोग मम्मट ने अपने काव्यप्रकाश में करते हुए कहा है
'नियतिकृतनियमरहितां हादैकमयीमनन्यपरतन्त्राम्। नवरसरुचिरा निर्मितिमादधती भारती कवेर्जयति।। ६३
कवि की वाणी के वैशिष्ट्य का आख्यान करते हुए उसे मम्मट ने नियति द्वारा निर्मित नियमों से विलक्षण प्रतिपादित किया है। इसमें प्रयुक्त 'नियति' शब्द पर काव्यप्रकाश के विभिन्न टीकाकारों ने प्रकाश डाला है। प्रमुख व्याख्याएँ इस प्रकार हैं१. नियम्यते कमलसौगन्ध्यादिकं अनयेति असाधारणो धर्मः
कमलत्वादिर्नियतिः।। -बालचित्तानुरंजनी टीका २. नियतिः कर्मापरपर्याया सर्वोत्पत्तिमन्निमित्तम्- विवेक टीका ३. नियम्यन्ते स्वस्वकार्योत्पत्तये प्रेर्यन्ते निरुध्यन्ते च भावा अनयेति
नियतिरदृष्टं। -दीपिका टीका ४. नियतिर्नियामिका शक्ति: -सम्प्रदायप्रकाशिनी टीका
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