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१९२ जैनदर्शन में कारण-कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
पदार्थ का स्वगत भाव ही स्वभाव है। प्रत्येक पदार्थ की सत्ता अलग-अलग होने से स्वभाव में अनेकता और विविधता है। स्वभाव के सामान्य स्वरूप को विद्वानों द्वारा परिभाषित किया गया है। जैन दार्शनिकों ने कहीं वस्तु के परिणाम को तो कहीं उत्पाद-व्यय-घ्रौव्यात्मकता को स्वभाव कहा है। कुछ ग्रन्थों में स्वभाव अन्तरंग कारण के रूप में सामान्य अस्तित्व और गुण-पर्याय स्वरूप में प्रस्तुत हुआ है । किसी ने वस्तु के स्वभाव को ही धर्म के रूप में परिभाषित किया है। आगम में स्वभाव निरूपण
भगवती सूत्र और उसकी वृत्ति में-भगवती सूत्र में तीन प्रकार के पुद्गल परिणाम कहे गए हैं- 'तिविहा पोग्गला पण्णत्ता तंजहा-पयोगपरिणता, मीससा परिणता, वीससा परिणता।३४ आचार्य महाप्रज्ञ ने इन तीन परिणामों के आधार पर सृष्टि के तीन भेद किए हैं - १. प्रयोगजा सृष्टि २. स्वभावजा सृष्टि ३. मिश्रजा सृष्टि।२२५ इन तीनों सृष्टियों में प्रयोग-परिणाम, मिश्र-परिणाम और स्वभाव-परिणाम आधारभूत तत्त्व माने गए हैं। प्रथम दो परिणामों का सम्बन्ध जीवकृत सृष्टि से है, जबकि स्वभाव परिणाम का अजीवकृत सृष्टि से है। वर्ण आदि का परिणमन पुद्गल के स्वभाव से ही होता है, इसमें जीव का कोई योग नहीं है।
अभयदेवसूरि ने भगवती सूत्र की वृत्ति में शरीर निर्माण में जीव का प्रयोग और स्वभाव दोनों का योग बतलाया है- 'प्रयोगपरिणाममत्यजन्तो विस्रसया स्वभावान्तरमापादिताः मुक्तकडेवरादिरूपाः। अथवोदारिकादिवर्ग रूपा विस्रसया निष्पादिताः संतः जीवप्रयोगेणैकेन्द्रियादिशरीरप्रभृतिपरिणाममापादितास्जीवप्रयोगेणैकेन्द्रियादिशरीरप्रभृति-परिणाममापादितास्तै मिश्रपरिणताः।२३६
अर्थात् शरीर का निर्माण जीव ने किया है, इसलिए वह जीव के प्रयोग से परिणत द्रव्य है। स्वभाव से उसका रूपान्तरण होता है इसलिए वह मिश्र परिणत द्रव्य है। औदारिक आदि वर्गणा स्वभाव से निष्पन्न है। जीव के प्रयोग से वे शरीर रूप में परिणत होती हैं। इसमें भी जीव के प्रयोग और स्वभाव दोनों का योग है।
स्थानांग सूत्र एवं उसकी वृत्ति में- स्थानांग सूत्र के द्वितीय स्थान में 'पुद्गल पद' के अन्तर्गत पुद्गल संबंधी क्रियाओं में स्व तथा पर को कारण माना गया है। यथा- 'दोहिं ठाणेहिं पोग्गला साहण्णंति, तंजहा- सई वा पोग्गला साहण्णंति, परेण वा पोग्गला साहण्णंति। दोहिं ठाणेहिं पोग्गला भिज्जंति, तंजहा- सई वा पोग्गला भिज्जंति परेण वा पोग्गला भिज्जति।२३७ अर्थात् दो
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