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स्वभाववाद १८५ भेद नहीं रहेगा। यदि ज्ञापक हेतु साध्य का अनुत्पादक होता है और कारक हेत साध्य का उत्पादक होता है तो इससे आपकी प्रतिज्ञा स्पष्ट रूप से बाधित होती है। क्योंकि नियत भाव की उपस्थिति होने पर ही प्रतिनियत वस्तु का जन्म होता है, अत: सहेतुक होती हैं। जैसे आपके द्वारा प्रयुक्त साधन (ज्ञापक हेतु) नियत भाव की उपस्थिति होने पर ही साध्यार्थ का ज्ञान कराते हैं वैसे ही मयूरचन्द्रकादि भाव भी सहेतुक हैं यह स्वभाव हेतु से सिद्ध है। अत: स्वभाववाद को स्वीकार करना युक्ति संगत नहीं है।२०७
(६) अनुपलभ्यमान सत्ताकं' हेतु दोषपूर्ण- इस प्रकार कण्टकादि की तीक्ष्णता में बीजादि की कारणता, अन्यतम कारण का अभाव होने पर कार्य की असिद्धि, प्रतिनियत देश-काल आदि की अपेक्षा होने से उनकी कारणता, कादाचित्कत्व हेतु की अनुपपन्नता आदि से यह सिद्ध है कि पदार्थों के कारण की सत्ता अनुपलब्ध नहीं है- 'एवमनुपलभ्यमानसत्ताकं भावानां कारणमिति हेतोरसिद्धता, प्रतिज्ञायाश्च प्रत्यक्षविरोधो व्यवस्थितः। २०८ अर्थात् पदार्थों का कारण अनुपलभ्यमानसत्ता वाला है, यह हेतु असिद्ध है तथा आपकी (स्वभाववादियों की) प्रतिज्ञा में प्रत्यक्ष विरोध आता है।
यदि आपका हेतु 'अनुपलभ्यमानसत्ताकं कारणं' सिद्ध माना जाए तो उसमें अनैकान्तिकता का दोष आता है। क्योंकि प्रदत्त हेतु 'कारणता' को स्थापित करते हुए उनकी 'निर्हेतुकता' की प्रतिज्ञा को ही बाधित कर देता है। पहली बात तो यह है कि अनुपलम्भ मात्र को हेतु मानने में कोई प्रमाण नहीं है और यदि हेतु मान भी लिया जाए तो स्वभाववादियों के द्वारा कारणता की स्वीकृति हो जाती है जिससे निर्हेतुक स्वभाववाद की प्रतिज्ञा ही भंग हो जाती है।
(७) अनुपलब्धि हेतु की असिद्धि- अनुपलब्धि हेतु को आपने स्वोपलम्भनिवृत्ति रूप माना है या सर्वपुरुषोपलम्भनिवृत्ति रूप?२०९ प्रथम पक्ष ठीक नहीं है, क्योंकि तमाल,वेतस आदि वृक्षों के अन्तर्गत होने वाले बीज स्वंय को दृष्ट (स्वोपलम्भ) नहीं होते हैं तो भी उनकी सत्ता निवृत्त नहीं होती है अर्थात् सत्ता से होते हैं। सर्वपुरुषोपलम्भनिवृत्तिरूप द्वितीय पक्ष भी युक्त नहीं है, हेतु के असिद्ध होने से। सभी पुरुषों के द्वारा अदृष्ट (सर्वपुरुषोपलम्भनिवृत्ति) होने पर मयूरचन्द्रकादि की कारणता की अनुपलब्धता निश्चयपूर्वक नहीं कही जा सकती है।१०
(८) हेतु का प्रयोग करने पर प्रतिज्ञा का भंग- 'निर्हेतुका भावाः' की प्रतिज्ञा में आपके द्वारा हेतु स्वीकार किया गया है, या नहीं?११ यदि हेतु का उपादान नहीं किया गया है तो स्वपक्ष की सिद्धि नहीं होगी, क्योंकि प्रमाण के बिना प्रतिज्ञा सिद्ध नहीं होती। हेतु के ग्रहण करने पर प्रमाणजन्य पक्ष की सिद्धि को स्वीकार करने
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