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१८२ जैनदर्शन में कारण- कार्य व्यवस्था : एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण
वह प्रेक्षावान के लिए असत् व्यवहार का विषय है यथा- खरगोश के सींग । इसी प्रकार पदार्थों के कारण की भी सत्ता उपलब्ध नहीं होने से वह व्यवहार का विषय नहीं है। यह तथ्य स्वभावानुपलब्धि हेतु से सिद्ध है। इस प्रकार कारण का 'अनुपलभ्यमानसत्ताकं' विशेषण कार्यों का निर्हेतुजन्य होना सिद्ध करता है ।
२. प्रत्यक्ष से कारणता की असिद्धि - काँटों की तीक्ष्णता आदि में किसी निमित्त का प्रत्यक्ष आदि से अनुभव नहीं किया जाता है । १९५ इसलिए कहा गया है - कः कण्टकानां प्रकरोति तैक्ष्ण्यं विचित्रभावं मृगपक्षिणां वा । स्वभावतः सर्वमिदं प्रवृत्तं न कामचारोऽस्ति कुतः प्रयत्नः ।।
कौन काँटों को तीक्ष्ण करता है, कौन पशु-पक्षियों में विचित्र भाव को उत्पन्न करता है। ये सभी स्वभाव से होते हैं। इनमें किसी का स्वेच्छाचार या प्रयत्न नहीं है।
३. कादाचित्क हेतु से दुःखादि आध्यात्मिक कार्यों की निर्हेतुकता प्रमाणित- यदि यह कहा जाए कि बाह्य पदार्थों के कारणों की अनुपलब्धि होने से उनकी अहेतुकता भले ही सिद्ध हो, किन्तु दुःखादि आध्यात्मिक कार्यों के प्रति निर्हेतुकता कैसे सिद्ध होगी? तो कहना होगा कि दुःखादि की प्रत्यक्ष प्रमाण से निर्हेतुकता भले ही असिद्ध हो, किन्तु अनुमान प्रमाण से सिद्ध है, यथा- "जो कादाचित्क होता है वह निर्हेतुक होता है, जैसे- कण्टकादि की तीक्ष्णता" इसी प्रकार कादाचित्क दुःखादि स्वभाव हेतु से निर्हेतुक है । १९६
४. कार्य-कारण सिद्धान्त ही दोषपूर्ण- दूसरी बात यह है कि कारणकार्य सिद्धांत भी अपने आप में दोषपूर्ण है। इस सिद्धांत के अनुसार जिसके होने पर जिसका होना तथा न होने पर जिसका न होना पाया जाए अर्थात् जिसके साथ जिसकी अन्वय- व्यतिरेक व्याप्ति होती है, वह उसका कारण होता है। किन्तु कारण-कार्य का यह मन्तव्य उचित नहीं है, क्योंकि यह व्यभिचार से युक्त है। उदाहरणार्थ- स्पर्श का सद्भाव होने पर चक्षुर्विज्ञान होता है तथा इसके अभाव में नहीं होता है। स्पर्श और चक्षुर्विज्ञान के मध्य व्याप्ति सम्बन्ध होने के बावजूद भी स्पर्श चक्षुर्विज्ञान के प्रति कारण नहीं होता है। इस व्यभिचार से कारणत्व का लक्षण खण्डित होता है। अतः सभी हेतुओं से निरपेक्ष कार्योत्पत्ति होती है, ऐसा सिद्ध होता है । १९७
यहाँ निर्हेतुक स्वभाववादी द्वारा अपने मत का उपस्थापन करने से पूर्व 'स्वभाव हेतुवादी' के मत का निराकरण किया गया है। स्वात्मनिक्रियाविरोध से एवं
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