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________________ जैनदर्शन में कारणवाद और पंचसमवाय ६७ ५१. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा २०८८ ५२. उत्तराध्ययन सूत्र २८.१० ५३. तत्त्वार्थ सूत्र अ. ५, सूत्र २२ ५४. भगवती सूत्र, शतक २५, उद्देशक ५ ५५. बृहद् द्रव्य संग्रह-प्रथमाधिकार, गाथा २१ ५६. भगवती सूत्र, शतक ७, उद्देशक २ ५७. अनुयोगद्वार सूत्र, नामाधिकार, सूत्र २३३ अनुयोगद्वार सूत्र, नामाधिकार, पृ. १५७ जीवोदयनिप्फन्ने अणेगविहे पण्णत्ते। तंजहा- णेरइए, तिरिक्खजोणिए, मणुस्से, देवेपुढविकाइए जाव वणस्सइकाइए तसकाइए, कोहकसायी जाव लोहकसायी इत्थीवेदए पुरिसवेदए, णपुंसगवेदए, कण्हलेसे एवं नील. काउ.तेउ.पम्ह. सुक्कलेसे, मिच्छादिट्ठि, अबिरए अण्णणी आहरए छउमत्थे सजोगी संसारत्थे असिद्धे। से तं जीवोदयनिप्फन्ने। - अनुयोगद्वारसूत्र, नामाधिकार पृ. १५८ अनुयोगद्वारसूत्र, नामाधिकार पृ. १५९ ६१. अनुयोगद्वारसूत्र, नामाधिकार, पृ. १५९ ६२. अनुयोगद्वारसूत्र, नामाधिकार, पृ.१६१ ६३. अनुयोगद्वारसूत्र, नामाधिकार, पृ. १६१ ६४. अनुयोगद्वारसूत्र, नामाधिकार, पृ. १६४ ६५. अनुयोगद्वारसूत्र, नामाधिकार, पृ. १६४ अनुयोगद्वारसूत्र, नामाधिकार, पृ. १६९ भावम्मि होइ दुविहं अपसत्थ पसत्थ यं च अपसत्थं। संसारस्सेगविहं दुविहं तिविहं च नायव्वं।।२११९।। असंजमो य एक्को अन्नाणं अविरई य दुविहं च। मिच्छत्तं अन्नाणं अविरई चेव तिविहं तु।।२१२०॥ होइ पसत्थं मोक्खस्स कारणमेगविह दुविह तिविहं च। तं चेव य विवरीयं अहिगार पसत्थएणेत्थं।।२१२१।। -विशेषावश्यकभाष्य ६८. तत्त्वार्थ सूत्र, १.२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002509
Book TitleJain Darshan me Karan Karya Vyavastha Ek Samanvayatmak Drushtikon
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShweta Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2007
Total Pages718
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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