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एकेन्द्रिय
पृथ्वीकायिक अपकायिक
तेजस्कायिक
न्द्रिय
वायुकायिक
जैनदर्शन में कारणवाद और पंचसमवाय ४१
सांसारिक जीव के भेद
त्रीन्द्रिय
चतुरिन्द्रिय
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नारकी
मनुष्य
पंचेन्द्रिय
तिर्यंच
वनस्पतिकायिक
इन जीवों में घटित होने वाले कार्य अनन्त प्रकार के हो सकते है, उनमें से कुछ का दिग्दर्शन कराया जा रहा है
देवता
१. पृथ्वीकायिक जीव में कार्य- मिट्टी का पत्थर बनाना, पृथ्वी के गर्भ में हीरा / सोना आदि का निर्मित होना, पृथ्वीकाय के जीव का मरकर अन्य योनि में उत्पन्न होना।
२. अप्कायिक में कार्य- पानी का बर्फ बनना, पानी का भाप बनना, अप्काय के जीव का मरकर अन्य योनि में जाना।
३. तेजस्कायिक में कार्य- अग्नि के जीव का मरकर अन्य योनि में जाना ।
४. वायुकायिक में कार्य- तूफान आना, आँधी आना, वायुकाय के जीव का मरकर अन्य योनि में जाना ।
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५. वनस्पति में कार्य - बीज का पौधा या पेड़ बनना, पत्तों की खाद बनना, फूल 'के फल बनना, लकड़ी से फर्नीचर बनना ।
६. द्वीन्द्रिय- द्वीन्द्रिय प्राणियों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना, भोजन
करना।
७. त्रीन्द्रिय- चींटी-मकोड़े आदि के द्वारा बिल बनाना, भोजन को एकत्रित करना, मरकर अन्य योनि में जाना ।
८. चतुरिन्द्रिय- श्वास लेना, मक्खी-मच्छर का काटना, उड़ना, मरकर अन्य योनि में जाना ।
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