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डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी जाता है अर्थात् मुक्ति हो जाती है। अतः ऋषिभाषित का यह भौतिकवाद, वह भौतिकवाद है, जो भेग का समर्थक न होकर के त्याग या निवृत्ति मार्ग का समर्थक है। क्योंकि अंत में यह कहा गया है कि पुण्य-पाप का अग्रहण होने से सुख-दुःख की संभावना का भी अभाव हो जाता है, पाप कर्मों का अभाव होने से शरीर के नाश होने पर पुनः शरीर की उत्पत्ति नहीं होती और इस प्रकार व्यक्ति सिद्ध, बुद्ध एवं विरत-पाप होकर इस संसार में पुनः नहीं आता है।४९ २. जीव-शरीरवाद
__ऋषिभाषित के 20 वें अध्याय में भौतिकवाद के साथ-साथ देहात्मवाद का भी प्रतिपादन मिलता है। उसमें कहा गया है कि ऊपर से लेकर चरमतल और नीचे से मस्तिष्क के केशाग्र तक इस आत्मा के ही पर्याय है, समस्त शरीर की त्वचापर्यन्त जीव है। इसी शरीर में यह जीव जीवन जीता है। इस प्रकार शरीर ही जीवन है, जिस प्रकार बीज के जल जाने पर फिर अंकुर की उत्पत्ति नहीं होती, वैसे ही शरीर के जल जाने पर पुनः शरीर की उत्पत्ति नहीं होती है।५१ जीव को पुण्य-पाप स्पर्श भी नहीं करते हैं५२ इस प्रकार यहाँ देहात्मवाद का प्रतिपादन हुआ है, किन्तु इसके साथ-साथ इसमें जैन परंपरा में विकसित शरीर परिमाण आत्मा की अवधारणा का भी पूर्व रूप हमें मिल जाता है। यद्यपि यहाँ पर परलोक, और शुभाशुभ कर्मो के फल विपाक का निषेध किया गया है और उसके साथ ही साथ प्रेत्यभाव (पुनर्जन्म) का भी निषेधा किया गया है किन्तु फिर भी इस देहात्मवाद के आधार पर भोगवादी जीवन दष्टि का समर्थन यहाँ नहीं देखा जाता है, संभवतः देहात्मवाद के प्रतिपादन का आशय भी यही था कि व्यक्ति वैराग्य की दिशा में आगे बढ़े। इस प्रकार ऋषिभाषित का भौतिकवाद और देहात्मवाद निवृत्ति मार्गी परंपरा का ही पौषक हैं भोगवाद का नहीं। सन्ततिवाद
सन्ततिवाद बौद्ध दर्शन का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। जो दार्शनिक सत् की व्याख्या परिवर्तनशील तत्त्व के रूप में करते हैं, उनके अनुसार किसी भी नित्य और
49. एवामेव दड्ढे सरीरे तम्हा पुण्णपावऽग्गहण सुहदुक्खसंभवाभावा सरीरदाहे पावकम्माभावा सरीरं डहेत्ता णो पुणो सरीरुप्पती भवति।
-'इसिभासियाई'.....20/गद्यभाग पृ. 76 50. उड्ढं पायतला अहे केसग्गमत्थका एस आयाप तयपरितन्ते एस जीवे। एस मडे, णो एतं तं
-वही, 20/गद्यभाग पृ76 51. से जहा णामते दड्ढेसु बीएसु, ण पुणो अंकुरुप्पत्ती भवति, एवामेव दड्ढे सरीरेण पुणो सरीरुप्पत्ती भवति।
-वही, 20/गद्यभाग 52. णस्थि सुक्कडदुक्कडाणं कम्माणं फलवित्तिविसेसे।
-वही, 20/गद्यभाग
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