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ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन
विशेष रूप से चित्त सृष्टि उत्पन्न होती है और उन महाभूतों के पृथक् हो जाने पर सृष्टि का विनाश हो जाता हैं। इस प्रकार इस उत्कलवादी नामक अध्याय में सृष्टि के मूलतत्त्व के रूप में पांच महाभूतों की सत्ता का उल्लेख किया गया है और उन्हें ही सृष्टि का मूलभूत घटक माना गया है।
(ब) उपर्युक्त भौतिकवादी दृष्टिकोण के अतिरिक्त इस अध्याय में सृष्टि के मूलतत्त्वों के संबंध में हमें एक शून्यवादी दृष्टिकोण भी उपलब्ध होता है। उसमें कहा गया है कि “समस्त उत्पन्न होने वाली सत्ताएँ तथ्य ( Real) नहीं है, अर्थात् यथार्थ नहीं है। न तो वे उत्पत्ति के पूर्व होती है और न विनाश के बाद ही उनका कोई अस्तित्व रहता है। विश्व में ऐसी कोई भी सत्ता नहीं है, जो नित्य या शाश्वत हो। यह विचारधारा जगत को एक प्रक्रिया के रूप में तो अवश्य देखती है, किन्तु जगत के मूल में किसी नित्य शाश्वत सत्ता का अस्तित्व स्वीकार नहीं करती है । इस सिद्धांत के अनुसार संसार एक घटना है, उसके पीछे कोई भी मूलभूत नित्य तत्त्व नहीं है। संभवतः यह बौद्ध तत्त्वमीमांसा का प्राचीनतम रूप रहा हो, जिसके आधार पर उसका विकास हुआ हो। "
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ऋषिभाषित में विविध ऋषियों के विचारों का संकलन होने से उसमें विविध प्रकार की तत्त्वमीमांसीय अवधारणाएँ उपलब्ध होती है। अतः ऋषिभाषित को किसी एक ही दार्शनिक परंपरा या सिद्धांत का प्रतिपादक नहीं कहा जा सकता । तत्त्वमीमांसीय दृष्टि से उसमें जो दार्शनिक सिद्धांत उपलब्ध है, उन्हें निम्न रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है-
९. भौतिकवाद
ऋषिभाषित के 20 वें अध्याय में हमें भौतिकवाद का उल्लेख उपलब्ध होता है। उसमें संसार को पांच महाभूतों का समूह कहा गया है और यह भी माना गया है कि इन पांच महाभूतों के समुदाय से ही जीव की उत्पत्ति होती है। शरीर से पृथक् जीव या आत्मा नहीं है, अतः शरीर का नाश हो जाने पर संसार अर्थात् जन्म मरण की परंपरा का भी नाश हो जाता है, यद्यपि ये सभी विचार चार्वाकों के भौतिकवाद काही पूर्व रूप है।
किन्तु इस भौतिकवाद की एक विशेषता यह है कि वह इन पंच महाभूतों के स्कन्ध और उनसे उत्पन्न शरीर के नष्ट होने पर यह संसार, परंपरा, भवगति या संसार सन्तति के विच्छेद का निर्देश करता है अर्थात् इसमें भी संसार चक्र से मुक्ति को ही चरम आदर्श माना गया है। इस प्रकार यद्यपि यहाँ भौतिकवाद का प्रतिपादित किया गया है किन्तु वह भौतिकवाद संसार के प्रति ममत्व के उन्मूलन के लिए है। उसमें यह माना गया है कि देह के विनाश के साथ ही संसार परंपरा का अन्त हो
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