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________________ 76 ऋषिभाषित में चार प्रश्न उपस्थित किये गए हैं 1- गति क्या है? 2- गति किसकी होती है ? 3- गतिभावं अर्थात् गति का स्वरूप क्या है ? वह सान्त है या अनन्त उसका प्रारंभ है अथवा नहीं? 4- उसे गति क्यों कहा जाता है? ऋषिभाषित में लोक और गति से संबंधित इन नौ प्रश्नों के जो संक्षिप्त उत्तर दिये गये हैं, उनसे ऋषिभाषित का और विशेष रूप से पार्श्व की तत्त्वमीमांसा का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। 2. सृष्टि का मूलतत्त्व तत्त्वमीमांसीय दृष्टि से लोक का मूल तत्त्व क्या है? वह जड़ है या चेतन ? यह एक मूलभूत प्रश्न रहा है आध्यात्मवादी दार्शनिक संसार के मूल में मात्र चेतन तत्त्व का अस्तिव स्वीकार करते हैं, उनके अनुसार आत्मा या चित्त ही मूलतत्त्व है और यह समस्त जगत उसी की अभिव्यक्ति है। आत्मा या चित्त को ही मूलतत्त्व मानने संबंधी यह दृष्टिकोण हमें उपनिषदों में उपलब्ध होता है जहाँ ब्रह्म को ही संसार का मूलतत्त्व माना गया है। संसार में जो कुछ है, वह ब्रहूम ही है - यह आध्यात्मवाद का मुख्य दर्शन है। जैन आगमों में सूत्र कृतांग में हमें इस प्रकार का दृष्टिकोण उपलब्ध होता है, उसमें कहा गया है कि विज्ञाता ही विविध रूपों में दिखाई देता है। यही दृष्टिकोण हमें बौद्ध विज्ञानवादियों का भी प्रतीत होता है।" जो चित्त या विज्ञान को ही समस्त सृष्टि का आधार मानते हैं। इसके विपरीत भौतिकवादी जड़ तत्त्व को सृष्टि का मूल आधार मानते हैं। वे चार अथवा पांच भूतों को ही संसार का मूल उपादान मानते हैं और उसी से चेतना की उत्पत्ति बताते हैं। स्वयं ऋषिभाषित के ही 20 वें 3. 5- उसे किस कारण से लोक कहा जाता है? ऋषिभाषित में गति से संबंधित दार्शनिक समस्या को प्रस्तुत करते हुए 4. 5. डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी (1) का गती? (2) कस्स वा गती? (3) के वा गतिभावे? (4) केण अटठेण गती पवुच्च तिं? -" इसि भासियाइ" 31 / 1 गद्यभाग पृ. 132 (अ) सर्ववैखलु इदं ब्रह्म, नेह नानास्ति किंचन । आरामं तस्य पश्यन्ति, न त पश्यति कश्चन ।। (ब) ब्रह्म एव इदं विश्वम् जहा य पुढवीथूमे, एगे नाणहि दीसईं एवं भो! कसिणे लोए, विस्सू नाणहि दीसई " भारतीय दर्शन" दत्त एवं चटर्जी, पृ. 97 विज्ञानवाद Jain Education International For Private & Personal Use Only -" छान्दोग्य उपनिषद " 3/14/1 -"मुण्डक उपनिषद " 2/2/11 -" सूत्रकृतांग" 1/1/9 www.jainelibrary.org
SR No.002508
Book TitleRishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkumari Sadhvi
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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