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डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी (स) बुद्धि, मति और मेधा- इसी प्रकार ऋषिभाषित में प्रयुक्त बुद्धि, मति और मेधा शब्द भी सामान्य रूप से मनुष्य की चिन्तन सामर्थ्य और विवेकशीलता के सूचक हैं।१७ ऋषिभाषित में प्रयुक्त ये तीनों शब्द पर्यायवाची है या भिन्न-भिन्न अर्थों के सूचक हैं-यह स्पष्ट नहीं होता है, किन्तु हमें यह अवश्य स्मरण रखना चाहिये कि परवर्ती जैन परंपरा में मति शब्द का प्रयोग ऐन्द्रिक ज्ञान के अर्थ में हुआ है। तत्त्वार्थ-सत्र में इंद्रिय और मन से उत्पन्न होने वाले ज्ञान को मतिज्ञान कहा है।१८ तत्त्वार्थ सूत्र में मति, संज्ञा, स्मृति चिन्ता, अभिनिबोध आदि को पर्यायवाची कहा गया
किन्तु मति शब्द बुद्धि की अपेक्षा व्यापक अर्थ में ग्रहित है। बुद्धि से सामान्यतया व्यक्ति की मानसिक चिन्तन सामर्थ्य को ही ग्रहित किया जाता है। अतः मति की उपेक्षा बुद्धि शब्द का क्षेत्र सीमित होता है। पुनः मति की अपेक्षा बुद्धि शब्द का क्षेत्र सीमित होता हैं। पुनः मेधा शब्द और भी सीमित अर्थ का सूचक है, वह केवल विशिष्ट बौद्धिकता को ही सूचित करता है। बुद्धिमानों में भी जो श्रेष्ठ होता है उसे ही मेधावी कहा जाता है। अतः हम इन तीन शब्दों में अर्थ की दृष्टि से कुछ अंतर कर सकते हैं। किन्तु जहाँ तक ऋषिभाषित का प्रश्न है, वह मात्र इन पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग करता है, किन्तु इनका विशेष अर्थ स्पष्ट नहीं करता है।
दुर्भाग्य से ऋषिभाषित की प्राचीन व्याख्याएँ और टीकाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं। ऋषिभषित पर भद्रबाहु ने जिस नियुक्ति की रचना करने की प्रतिज्ञा की थी, वह या तो लिखी ही नहीं गई या फिर आज उपलब्ध नहीं है। अतः ऋषिभाषित में उल्लेखित ज्ञानमीमांसीय पारिभाषिक शब्दों का अर्थ निर्धारण करना भी कठिन है। यदि ऋषिभाषित की ज्ञानमीमांसा पर अधिक प्रकाश डाला जाना संभव होता। किन्तु वर्तमान स्थिति में हम उसमें उपलब्ध ज्ञान मीमांसा के पारिभाषिक शब्दों की अपनी दृष्टि से की गई इन व्याख्याओं के अतिरिक्त अधिकारिक रूप में कुछ भी नहीं कह सकते हैं।
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17. "इसिभासियाई" 45/34 18. "तदिन्द्रियानिन्द्रिय निमित्तम्" तत्वार्थसूत्रम् 1/15 19. "मतिः स्मृतिसंज्ञाचिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थातरम्'
-तत्त्वार्थसूत्रम 1/13
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