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डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी यद्यपि बौद्ध साहित्य में संजय को संशयवादी कहा गया है क्योंकि वे तात्त्विक प्रश्नों का निश्चयात्मक उत्तर नहीं देते थे। दूसरे शब्दों में वे निश्चयात्मक शब्दावली का प्रयोग नहीं करते थे। ऋषिभाषित के उपदेशों के आधार पर स्पष्टरूप से संजय को संशयवादी नहीं कहा जा सकता, किन्तु गांथा में प्रयुक्त द्रव्य, क्षेत्र आदि पारिभाषिक शब्द ऐकान्तिक निश्चयात्मकता के निषेधक कहे जा सकते हैं।१७९ ४०. दीवायण (द्वैपायन)
ऋषिभाषित का चालीसवां अध्ययन द्वैपायन ऋषि से संबंधित हैं। इसमें इनके उपदेश संकलित हैं। जैन परंपरा में इनका उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त समवायांग, सूत्रकृतांग, दशवैकालिक चूर्णि आदि ग्रंथों में हुआ है।१८० सूत्रकृतांग में द्वैपायन का उल्लेख असित, नारायण, पाराशर ऋषियों के साथ हुआ है। उसमें यह भी कहा गया है कि इन्होंने सचित फलाहार और जल का सेवन करते हुए मोक्ष को प्राप्त किया। समवायांग इनके लिए आगामी तीर्थकर होने की घोषणा करता है। अन्तकृतदशा में द्वैपायन और यादवों से संबंधित एक कथानक का उल्लेख हुआ है।१८१ उसमें यह बताया गया है कि यादव कुमारों ने इन्हें बहुत सताया और साधना में बाधा उपस्थित की थी। फलस्वरूप इन्होंने द्वारिका के विनाश का दृढ़ निश्चय किया, जिसे जैन परंपरा में निदान कहा जाता है। संकल्पानुसार अग्निकुमार देव बनकर द्वारिका का विनाश किया।
इनके संदर्भ में यह भी स्मरणीय है कि जैन परंपरा में इन्हें जैनेतर ऋषि के रूप में उल्लेखित किया गया है।
बौद्ध परंपरा के जातक में 'कण्ह दीपायण' के संबंध में दो कथानक उपलब्ध होते हैं।१८२ प्रथम कथानक के कण्ह की ऋषिभाषित के द्वैपायन से कोई समानता दिखाई नहीं देती है किन्तु दूसरा कथानक कण्ह को वासुदेव के विनाशक के रूप में चित्रित करता है। इससे ऐसा लगता है कि ऋषिभाषित के द्वैपायन और जातक के कण्ह एक व्यक्ति रहे होंगे। प्रायः यह कथानक. तीनों परंपराओं में उल्लिखित है। जिसमें विषयवस्तु की समरूपता है। मात्र शाब्दिक अंतर दृष्टि गोचर होता है।
वैदिक परंपरा के प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत में इनका जीवन वृत्तान्त और उपदेश विस्तार से उपलब्ध होते हैं।१८३ उसमें इन्हें व्यास या वेदव्यास कहा गया है। उसमें यह भी कहा गया है कि भीष्म के आदेश से इन्होंने विचित्रवीर्य आदि की पत्नियों से तीन 179. रहस्से खलु. . . . . . . जहत्थं आलोएज्जा।
-'इसिभासियाई' 39/ गद्यभाग पृ. 177 180. (अ) समवायांगसूत्र 159
(ब) सूत्रकृतांगसूत्र 1/3/4/3
(स) दशवैकालिक चूर्णि पृ. 120 181. अन्तकृतदशा पृ. 71, 72 (मुनि प्यारचंद जी म.ब्यावर) 182. Dictionary of pali proper Names, Vol.I, P.501-503 183. महाभारत नामानुक्रमणिका, पृ.87, 162
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