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डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी
दूसरा नाम उद्दालक भी है। उद्दालक नाम से ऋषिभाषित में एक स्वतंत्र अध्याय हैं। अतः अरुण और आरुणि अलग-अलग हैं। महाशाल अरुण आरुणि या उद्दालक के पिता या गुरु होने चाहिये।
60.
अरुण
वैदिक कोश में आरुणि उद्दालक को एक ही व्यक्ति के रूप में उल्लिखित किया गया हैं और महाशाल अरुण का इनके पिता के रूप में उल्लेख करता है । १४९ शतपथ ब्राह्मण इनका पूरा नाम अरुण औपवेशि गौतम बताता है । १५० के साथ लगा हुआ 'महाशाल' शब्द उनके अश्वपति से शिक्षित होने का प्रतीक है क्योंकि छान्दोग्योपनिषद में यह कहा गया है कि अश्वपति से शिक्षा प्राप्त व्यक्ति महाशाल कहे जाते थे। इनके नाम के साथ लगा हुआ गौतम शब्द गोत्र का प्रतीक है। उपर्युक्त वर्णन के अनुसार ऋषिभाषित के महाशाल अरुण औपनिषदिक ऋषि अरुण औपवेशि गौतम ही हैं जो कि आरुणि- उद्दालक के पिता और गुरु हैं।
ऋषिभाषित में वर्णित अरुण से उपदेश का मुख्य प्रतिपाद्य मनुष्य की वाणी की शिष्टता है। महाशाल ऋषि के अनुसार मनुष्य के ज्ञान या मूर्ख होने के आधार पर उसकी वाणी है।९५१ इस अध्याय में संगति के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि मनुष्य को प्रज्ञाशील ज्ञानी पुरुष से संपर्क रखना चाहिये और अज्ञानी के साथ न तो संसर्ग करें और न उसके साथ तत्त्व-चर्चा ही करें१५२ क्योंकि संपर्क या संसर्ग से ही दोष और गुणों का प्रादुर्भाव होता है। इनके उपदेश की तुलना संस्कृत सूक्ति " संसर्गजा दोष-गुणा भवन्ति" से की जा सकती है। अंग्रेजी में प्रसिद्ध उक्ति Man is known by his company and tree is known by it's fruit से इसी तथ्य की पुष्टि होती है।
३४. ऋषिगिरि
ऋषिभाषित के चौतीसवें अध्ययन में इन्हें ब्राह्मण परिव्राजक के रूप में संबोधित किया गया है। जैनागम और जैन साहित्य में इनका उल्लेख ऋषिभाषित को छोड़कर अन्य कहीं भी उपलब्ध नहीं होता है।
जहाँ तक बौद्ध और वैदिक परंपरा का प्रश्न है उसमें कहीं पर भी ऋषिगिरि नामक ब्राह्मण परिव्राजक का उल्लेख उपलब्ध नहीं होता है।
149. वैदिककोश, पृ. 56
150. वही, पृ. 23
151. वही, 33/1-4
152. णेव बालेहिं संसग्गिं णेव बालेहिं संथवं ।
धम्माधम्मं च बालेहिं णेव कुज्जा कदायि वि।।
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- इसि भासियाई 33/6
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