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ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन
है । १४३ साथ ही इसमें यह भी कहा गया है कि ऐसी आध्यात्मिक कृषि करने वाला व्यक्ति चाहे ब्राह्मण हो, शुद्र हो, क्षत्रिय हो, या वैश्य उसे उसका लाभ अवश्य मिलता है । १४४ वह विशुद्धि को उपलब्ध होता है।
जैन परंपरा में ऋषिभाषित के प्रस्तुत अध्याय और मातङ्ग नामक छब्बीसवें अध्याय के अतिरिक्त अध्याय- - कृषि का वर्णन अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं होता है किन्तु बौद्ध परंपरा में अध्यात्म कृषि का वर्णन उपलब्ध होता है । सुत्तनिपात्त के कसभारद्वाज नामक वर्ग में वे स्वयं एक कृषक के रूप में अध्यात्म कृषि के साधनों का प्रतिपादन करते हुए कहते हैं कि " श्रद्धा मेरा बीज, तपवृष्टि, प्रज्ञा नंगल, मनजोत, स्मृतिकाल और निर्वाण की दिशा में प्रयत्नशील मेरी शक्तियाँ वीर्य ही मेरे बैल हैं । १४५ पुनः बुद्ध आध्यात्मिक कृषि की फलवत्ता का प्रतिपादन करते हुए यह कहते हैं कि यह खेती कभी निरर्थक नहीं होती। इससे दुःख मुक्ति रूप फल उपलब्ध होता है । १४६ इस प्रकार हम देखते हैं कि ऋषिभाषित की सुत्तनिपात में वर्जित आध्यात्मिक कृषि के विवरणों में समानता है ।
३३. महाशालपुत्र अरुण
ऋषिभाषित के तैतीसवें अध्ययन में महाशालपुत्र अरुण के उपदेश संकलित है। ऋषिभाषित को छोड़कर जैन परंपरा में अन्यत्र इनका उल्लेख उपलब्ध नहीं होता
है।
बौद्ध परंपरा में अरुण नामक पांच व्यक्तियों का उल्लेख मिलता है। 147 किन्तु बौद्ध परंपरा के अरुण और ऋषिभाषित के अरुण में एकत्व मानने का कोई आधार हमें नही मिला है।
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यहाँ प्रश्न यह उपस्थित होता है कि ऋषिभाषित में उल्लिखित अरुण ऋषि कौन है ? क्या ये वही है जो उपनिषदों में महाशाल अरुण के नाम से उल्लिखित है? ब्रिंग इनका संबंध औपनिषदिक ऋषि आरुणि के साथ जोड़ते हैं ? १४८ किन्तु डॉ. सागरमल जैन के अनुसार उनकी यह मान्यता समुचित नहीं है, क्योंकि आरुणि का
143. आता छेत्तं तवो बीयं, संजमो जुगणंगला ।
अहिंसा समिती जोज्जा, एसा धम्मन्तरा किसी ।। 144. एयं किसिं कसित्ताणं, सव्यसत्तदयावहं ।
माहणे खत्तिए वेस्से, सुद्दे वा वि य सिज्झती ।।
145. देखें - पिंग के समस्त विवरण के लिए-पालि प्रापर नेम्स भाग 2, पृ. 198-200
146. एसा किसी सोभतरा, अलुद्दस्स वियाहिता ।
एसा बहुसई होइ, परलोकसुहावहा ।।
147. Dictionary of pali proper Names, Vol.I, P. 182-84
148. "इसिभासियाई" इन्ट्रोडक्शन, पृ. 4
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- इसि भासियाई 32/3
-वही 32/5
- इसिभासियाई 32/3
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