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डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी निष्कर्म रूप में हम यह कह सकते हैं कि प्रस्तुत अध्याय में वर्णित दार्शनिक और आचार संबंधी पार्श्व के विचार भगवती में वर्णित उनके विचारों से समानता रखते हैं। इससे स्पष्ट है कि ऋषिभाषित के पार्श्व तीर्थंकर पार्श्व ही हैं। ३२. पिंग
ऋषिभाषित का बत्तीसवां अध्ययन पिंग ऋषि से संबंधित है। इसमें इनको ब्राह्मण-परिव्राजक अर्हत् ऋषि के रूप में उल्लिखित किया गया है। जैन परंपरा में ऋषिभाषित के अतिरिक्त अन्यत्र इनका जीवन चरित्र या उपदेश उपलब्ध नहीं होता हैं।
जैन परंपरा के अतिरिक्त बौद्ध परंपरा अंगुत्तर निकाय में एक पिंगयानी ब्राह्मण का उल्लेख अवश्य मिलता है, जो कि वैशाली निवासी थे एवं बुद्ध के अनुयायी थे।१३७ सुत्तनिपात में बाबरी के सोलह शिष्यों का उल्लेख हुआ है। उसमें एक शिष्य का नाम पिंगी है। इन्हें ध्यानी, गणी, संस्कारी आदि विशेषणों से संबोधित किया गया है।१३८ सुत्तनिपात के पारायण वग्ग में यह भी उल्लेख उपलब्ध होता है कि पिंगी ऋषि बुद्ध के समक्ष अपनी वृद्धावस्था की स्थिति का वर्णन करते हैं और बुद्ध इन्हें अतृष्णा, अप्रमत्तता की प्रेरणा देते हैं।१३९ उपर्युक्त वर्णन से तो ऐसा लगता है कि पिंगी बुद्ध युगीन ऋषि रहे होंगे और आयु में बुद्ध से बड़े थे। किन्तु प्रो. सी एम उपासक की दृष्टि में ऋषिभाषित के पिंग एक प्राचीन ऋषि हैं और इन्हीं से पिंगीय परंपरा का विकास हुआ होगा। अतः उनकी दृष्टि में सुत्तनिपात के पिंग और ऋषिभाषित के पिंग ऋषि भिन्न-भिन्न व्यक्ति होने चाहिये।१४०
वैदिक परंपरा के महाभारत में पिंगल नाम के ऋषि का उल्लेख उपलब्ध होता है।१४१ परंतु ऋषिभाषित के पिंग से इनकी समानता स्थापित करना मुश्किल है, क्योंकि दोनों की एकता का कोई पुष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
ऋषिभाषित के प्रस्तुत अध्याय का मुख्य उपदेश अध्यात्म कृषि का प्रतिपादन है। अध्ययन के प्रारंभ में ही यह प्रश्न पूछा गया है कि आर्य! तुम्हारा खेल कौन सा है? कौन से बीजों की खेती होती है और खेती करने के साधनभूत बैल और हल कौन से हैं?१४२ इस प्रश्न के उत्तर में आध्यात्मिक कृषि के साधनों का प्रतिपादन करते हुए कहा गया है कि वस्तुतः आत्मा रूपी खेत में तप रूप बीज वपन किया जाता है और संयम रूपी हल से और अहिंसा रूप बैलों से खेत की जुताई की जाती 137. Dictionary of pali proper Names, Vol.II, P.998&200 138. Ibid 139. Ibid 140. 'इसिभासियाई' एण्ड पालि बुद्धिस्ट टेक्स्ट्स -ए स्टडी 141. महाभारत नामानुक्रमणिका, प्र. 197 142. कतो छेत्तं? कतो बीयं? कतो ते जुगणंगला? गोणा वि ते ण पस्सामि, अज्जो. का णाम ते किसी?
-इसिभासियाई 32/2 Jain Education International For Private & Personal Use Only
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