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डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी बौद्ध परंपरा में अम्बड़ परिव्राजक का अम्बुद माणवक के रूप में उल्लेख उपलब्ध होता है।११७ ये ब्राह्मण को श्रेष्ठ और ज्येष्ठ मानते थे। इस संदर्भ में बौद्ध से भी उनका वाद-विवाद हुआ था। किन्तु बुद्ध के अनुसार श्रेष्ठता की कसौटी या आधार आचरण है न कि जाति। इस संदर्भ में यह स्मरणीय तथ्य है कि अम्बट्ठ के कृष्ण की परंपरा का होने के नाते काष्र्णायन कहा गया है।
औपपातिक में वर्णित परिव्राजकों की एक शाखा का नाम 'कण्ह' था। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि क्या बौद्ध परंपरा के कृष्ण और ऋषिभाषित के 'वारिसव' एक व्यक्ति है?
वैदिक परंपरा में हमें अम्बड़ के व्यक्तित्व, जीवन और सिद्धांत के संबंध में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती है।
जहाँ तक अम्बड़ ऋषि के उपदेश का प्रश्न है इसमें चार कषायों का त्याग, पाँच महाव्रतों का पालन, चार विकथा वर्जन, पंच इन्द्रिय संयम, सात भय निवारण, आठ मद त्याग आदि का उल्लेख हुआ है।११८ संक्षेप में इस अध्याय में जैन परंपरा की एक नहीं अपितु अनेक अवधारणाओं का उल्लेख हुआ है, जबकि ऋषिभाषित के अन्य अध्यायों में ऐसा देखने को नहीं मिलता है। २६. मातङ्ग
मातङ्ग अर्हत् ऋषि के उपदेशों का संकलन ऋषिभाषित के छब्बीसवें अध्ययन में हुआ है। मातङ्ग ऋषि का उल्लेख जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों परंपराओं में उपलब्ध होता है।११९ यह एक अलग प्रश्न है कि तीनों परंपराओं के मातङग एक ही व्यक्ति है या पृथक्-पृथक्। जैन परंपरा में मातङ्ग का उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त अन्यत्र उपलब्ध नहीं होता है।
बौद्ध परंपरा में इनका उल्लेख प्रत्येक बुद्ध के रूप में हुआ है, जो कि राजगृह के निवासी थे।१२० किन्तु मातङ्ग जातक इन्हें चाण्डाल कुलोत्पन्न कहता है। ये ब्राह्मण जाति के अहंकार को नष्ट करने में सफल हुए थे। ये यह प्रतिपादित करते थे कि सच्चे ब्राह्मणत्व का आधार आचरण है न कि कुल।
वैदिक परंपरा में महाभारत में उद्योग पर्व में मातङग का उल्लेख मिलता है।१२१ महाभारत के मातङग के उपदेश का मुख्य प्रतिपाद्य विषय यह है कि वीर पुरुष 117. दीघनिकाय खण्ड 1, पृ. 87 118. ववगय चउक्कसायाचउविकहविवन्जिता
पंचमहव्व तिगुत्ता पचिंदियसंवुडा-छज्जीवणिकाय सट्ठणिरता सतभयविप्पमुक्का अट्ठमयट्ठाण जढा।
-'इसिभासियाई' 25/12 गद्यभाग 119. देखें--ऋषिभषित की भूमिका (डॉ. सागरमल जैन) 120. जातक खण्ड 4,375-90(इडी.फसबाल)
121. महाभारत, उद्योगपर्व 129/1921 Jain Education International
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