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डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी साकेत निवासी महावीर के युग के व्यक्ति के रूप में उल्लिखित करता है।०७ इसके अतिरिक्त सूत्रकृतांग में भी नमि, नारायण, बाहुक ऋषि के साथ इनका उल्लेख हुआ है और यह कहा गया है कि सचित्त आहार का सेवन करते हुए भी इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया था।१०८
बौद्ध परंपरा में पालित्रिपिटक में इन्हें उदक रामपुत्त कहा गया है, जो कि बुद्ध से उम्र में बड़े थे। इतना ही नहीं पालित्रिपिटक इनकी शिष्य संपदा और साधना-पद्धति पर भी प्रकाश डालता है।१०९
जहाँ तक रामपुत्त के उपदेश का प्रश्न है वे इस अध्याय में सुख-मृत्यु और दुःख मृत्यु का उल्लेख करते हैं। ऐसा ही वर्णन उत्तराध्ययन सूत्र में समाधिमरण और असमाधिमरण के रूप में हुआ है।११° वस्तुतः जिसे सुख, मृत्यु, और दुःख मृत्यु का विकसित रूप कहा जा सकता है।
जैन, बौद्ध और वैदिक परंपरा में वर्णित रामपुत्त की तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर ऐसा लगता है कि ऋषिभाषित के रामपुत्त और पालित्रिपिटक के रामपुत्त एक ही व्यक्ति रहे होंगे। २४. हरिगिरि - ऋषिभाषित का चौबीसवां अध्ययन हरिगिरि से संबंधित है। जैन परंपरा में ऋषिभाषित को छोड़कर अन्य ग्रंथों में इनका कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं होता है।
बौद्ध परंपरा में हरित थेर का उल्लेख मिलता है। १११ इसमें इनको अर्हत् कहा गया है, किन्तु ऋषिभाषित के हरिगिरि हारित थेर ही हैं, यह कहना कठिन है।
वैदिक परंपरा में बृहदारण्यक उपनिषद् में आचार्यों की सूची में हारित काश्यप का उल्लेख मिलता है।११२ परंतु ठोस प्रमाण के अभाव में यह कह पाना कठिन है कि ऋषिभाषित के हरिगिरि और वैदिक परंपरा के हारित एक ही व्यक्ति होंगे।
__ ऋषिभाषित में वर्णित इनके उपदेशों का मुख्य प्रतिपाद्य नियतिवाद और कर्म सिद्धांत है। कर्म सिद्धांत की चर्चा ऋषिभाषित के अन्य अध्यायों में भी विस्तार से
107. अनुत्तरोपपातिक 3/6 108. सूत्रकृतांग शीलाङकवृत्ति खण्ड 2, पृ. 73
अभुंजिया नमी विदेही, रामगुत्ते य भुजिआ.....बीयाणि हरियाणि य 109. जातक खण्ड 1, पृ. 6681
विस्तार के लिए देखें-पालि प्रापर नेम्स 110. एयं अकाम-मरणं, बालाणं तु पवेइयं।
एत्तो सकाम-मरणं, पण्डियाणं सुणेह मे।। 111. देखें----डिक्शनरी ऑफ पालि प्रापर नेम्स 1323-24 112. बृहदारण्यकोपनिषद् 61/41/33
-'उत्तराध्ययनसूत्र' 5/17
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