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ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन उत्तराध्ययन इनका उल्लेख संजय के गुरु के रूप में करता है।१०२ साथ ही इन्हें विद्या पारंगत कहकर इनकी ऐतिहासिकता और महत्ता पर प्रकाश डालता है।
जैन परंपरा के अतिरिक्त वैदिक परंपरा में भी इनका उल्लेख महाभारत में अनुशासन पर्व में हुआ है। किन्तु वहाँ इन्हें विश्वामित्र का ब्रह्मवादी पुत्र कहा गया. है।०३ इससे यह ज्ञात होता है कि गर्दभाल उस युग के एक प्रभावशाली पुरुष रहे होंगे।
बौद्ध परंपरा में इनका कही पर भी उल्लेख नहीं मिलता है।
जहाँ तक इनके उपदेशों का प्रश्न है ये मुख्य रूप से पुरुष की श्रेष्ठता का और स्त्री की निम्नता का प्रतिादन करते हैं। इस विचारधारा की समानता जैन परंपरा में वर्णित दस कल्पों में पुरुष ज्येष्ठ कल्प से के साथ की जा सकती है। वे इस अध्याय में नारी की आलोचना करते हुए कहते हैं कि नारी सिंह युक्त स्वर्णगुफा, विषयुक्त पुष्पमाला और भंवर से युक्त नदी के समान है और साथ ही वे नारी के वश में रहनेवाले पुरुष को भी धिक्कार देते हैं।१०४
इस विवेचन को देखते हुए मुझे ऐसा लगता है कि गर्दभाल ऋषि ने नारी के उदात्त पक्ष पर समुचित ढंग से चिन्तन न करके मात्र उसके विकृत रूप पर अधिक बल दिया है। यद्यपि एक गाथा में उनहोंने नारी की प्रशंसा में दिव्यकुल की गाथा, प्रफुल्लित कमलिनी आदि शब्द कहे हैं, किन्तु इसे भी निंदा युक्त प्रशंसा ही कहा जा सकता है।१०५
जहाँ तक ऋषिभाषित और महाभारत क गर्दभाल की एकता का प्रश्न है किसी सक्षम प्रमाण के अभाव में यह कहना मुश्किल है कि ये एक ही व्यक्ति रहे होंगे। २३. रामपुत्त
रामपुत्त ऋषि का उल्लेख जैन, बौद्ध और वैदिक परंपराओं में उपलब्ध होता है। ऋषिभाषित के तेइसवें अध्याय में इनके उपदेश संकलित हैं। जैन परंपरा के स्थानांग और अनुत्तरोपपातिक ग्रंथों में इनका उल्लेख हुआ है। स्थानांग में वर्णित अन्तकृतदशा की अध्यायों की विषय सूचि में एक रामपुत्त नामक अध्ययन का उल्लेख था, किन्तु०६ वर्तमान में यह अध्ययन उपलब्ध नहीं है। अनुत्तरोपपातिक इन्हें
102. उत्तराध्ययन सूत्र 18/19, 22 103. महाभारत-अनुशासन पर्व 4/1 104. हेमा गुहा ससीहा वा, माला वा वज्झकप्पिता।
सविसा गन्धजुत्ती वा, अन्तो दुट्ठा व वाहिणी।। 105. गाहाकुला सुदिव्वा व, भावका मधुरोदका।
फुल्ला व पउमिणी रम्भा, वालक्कन्ता व मालवी।। 106. स्थानांगसूत्र 755
-'इसिभासियाई' 22/5
-वही- 22/4
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