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________________ 48 डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी सत्ता का अस्तित्व नहीं है। वस्तुतः इनके अनुसार कोई नित्य या शाश्वत तत्त्व ही नहीं है। इस प्रकार उपरोक्त पांच प्रकार के उत्कलवाद ऋषिभाषित के अतिरिक्त अन्य किसी जैन ग्रंथ में उपलब्ध नहीं होते हैं। यद्यपि भौतिकवादी विचारधारा का उल्लेख जैन परंपरा के सूत्रकृतांग और बौद्ध परंपरा के पयासीवृत्त में उपलब्ध होता है। भौतिकवादी विचारधारा का मुख्य प्रतिपाद्य विषय है- शरीर से अलग किसी आत्मा का अस्तिव नहीं है। २१. गाथापतिपुत्त - तरुण ऋषिभाषित के इक्कीसवें अध्ययन में गाथापति पुत्र तरुण के उपदेश संकलित हैं। जैन परंपरा में मात्र ऋषिभाषित को छोड़कर अन्य किसी ग्रन्थ में इनका उल्लेख उपलब्ध नहीं होता है। जैन परंपरा के अतिरिक्त बौद्ध और वैदिक परंपराएँ भी इनके जीवन और सिद्धान्त के संबंध में हमें किसी प्रकार की कोई सूचना नहीं देती है। तरुण के उपदेश का मुख्य प्रतिपाद्य विषय अज्ञान का निवारण और ज्ञान की उपलब्धि करना रहा है। उनके अनुसार अज्ञान ही जीवन का सबसे बड़ा दुःख है और अज्ञान के वशीभूत आत्मा संसार में भ्रमण करता है। वे स्वयं इस अध्याय में स्पष्टरूप से कहते हैं कि 'अज्ञान के कारण मेरी जानने, देखने की ज्ञानात्मक क्रियाएँ कुण्ठित हो गई थी किन्तु अब ज्ञान के सद्भाव में सम्यक् प्रकार से जानता हूँ, समझाता हूँ।' आगे इसी अध्याय में ज्ञान की सर्वोच्चता और अज्ञान की निष्कृष्टता पर प्रकाश डालते हुए वे कहते हैं कि अज्ञान से मूढ़ आत्मा खून के संबंध को भी भूल जाता है जैसा कि इस अध्याय की आठवीं गाथा में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि माता भद्रा शोकाकुल होकर अपनी पुत्री सुप्रिया का भक्षण करती है । १०१ इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि तरूण ऋषि की दृष्टि में अज्ञान ही जीवन का नाशक तत्त्व है। २२. गर्दभाल ऋषिभाषित का बाइसवां अध्ययन गर्दभाल या दगमाल से संबंधित है। जैन परंपरा में गर्दभाल का उल्लेख ऋषिभाषित और उत्तराध्ययन में हुआ है, किन्तु 101. (अ) अण्णणं परमं दुक्खं विवहो सव्वदेहिणं । (ब) अण्णाणमूलकं खलु भो पूव्वं, न जाणामि न पासामि, नाणमूलकं खलु भो इयाणिं जाणामि पासामि . (स) सुप्पियं तणयं भद्दा........चेव खादति । -' इसि भासियाई' 21 / गद्यभाग/21/10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002508
Book TitleRishibhashit ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkumari Sadhvi
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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