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ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन
वस्तुतः ये पौराणिक पुरुष है या औपनिषदिक ऋषि, निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। २०. उक्कल
ऋषिभषित के बीसवें 'उक्कल' नामक अध्ययन की विषयवस्तु या उपदेश जानने के पूर्व दो बातें जानना आवश्यक है। प्रथम तो यह कि इस अध्याय में किसी प्रवक्ता ऋषि का उल्लेख नहीं हुआ है और दूसरे इस अध्ययन में प्रयुक्त उक्कल (उत्कट) शब्द अपने आप में अनेक अर्थ समेटे हुए हैं, जैसे-बड़ा, ताकतवर, भीषण, मदमत्त, विषम, मदिरासेवी, उन्मत्त आदि। संपूर्ण अध्याय में भौतिकवादी दृष्टिकोण का या भौतिकवाद का प्रतिपादन हुआ है, जिसे लोकायतवाद, चार्वाक, यदृच्छावाद भी कह सकते हैं। वस्तुतः इस संदर्भ में उत्कट शब्द का अर्थ विषय-भाग लिया जाये तो प्रस्तुत उपदेश में संगति बैठ सकती है। क्योंकि इस अध्ययन में भौतिकवादी दृष्टिकोण की प्रस्तुति हुई है, जो कि भारतीय आध्यात्मिक दृष्टिकोण की विरोधी थी, दूसरे शब्दों में, यह भी कह सकते हैं कि अध्यात्मवाद से प्रतिकूल आचरण करने वाले भौतिकवादी या उत्कलवादी हैं।
__इस अध्याय में पाँच प्रकार के उत्कलवादियों का उल्लेख हुआ है।०० (1) - दण्डोत्कल (2) रज्जूत्कल (3) स्तेनोत्कल (4) देशोत्कील और (5) सर्वोत्कल। (1) दण्डोत्कल से तात्पर्य यह है कि जैसे दण्ड का आदि, मध्य और अन्तभाग
अलग-अलग नहीं है मात्र समुदाय है वैसे ही शरीर से पृथक् कोई आत्मा नहीं है। रज्जोत्कल यानी रस्सी तन्तुओं के समुदाय से पृथक् कुछ नहीं है, उसी तरह पंचभूतों से पृथक आत्मा या जीव नाम का कोई पृथक् तत्त्व नहीं है। पंचभूतों के नाश से जीव का भी उच्छेद या नाश हो जाता है। स्तेनोत्कलवादी वे हैं जो दूसरों के शास्त्रों से अपने सिद्धान्त का मण्डन
करके उसे ही सत्य मानते हैं। (4) देशोत्कलवादी आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करके भी आत्मा के
अकर्तृत्त्व, अभोक्तृत्त्व में विश्वास करते हैं। सर्वोत्कलवाद से तात्पर्य सर्वोच्छेदवाद या उसके समर्थक है अथवा यूँ कहें कि सर्वोत्कलवादी वे दार्शनिक हैं, जिनकी दृष्टि में किसी त्रैकालिक नित्य
100. पंच उक्कल पन्नत्ता, तंजहा: दण्डुक्कले 1.
रज्जुक्कले 2. तेणुक्कले 3. देसुक्कले 4. सव्वुक्कले 5.
-'इसिभासियाई 20/गद्यभाग
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