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ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन
१७. विदुर
ऋषिभाषित का सत्रहवां अध्ययन 'विदुर' से संबंधित है। जैन साहित्य में ऋषिभाषित के अतिरिक्त ज्ञाताधर्मकथा में भी अर्जुन, नकुल, सहदेव आदि व्यक्तियों के साथ विदुर का भी उल्लेख हुआ है।
बौद्ध परंपरा में 'विदुर' का उल्लेख 'विधुर' नाम से उपलब्ध होता है। " मिलिन्द - प्रश्न" में यह बताया गया है कि बोधिसत्व का ही किसी जन्म का नाम विदुर था । "
जहाँ तक वैदिक परम्परा का प्रश्न है, महाभारत इन्हें वर्णशंकर के रूप में उल्लिखित करता है। इनके पिता व्यास और माता अम्बिका ( दासी) मानी गयी है। महाभारत के स्त्रीपर्व में इनके उपदेश संकलित है। १२
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ऋषिभाषित में विदुर अपने उपदेशों में विद्या, महाविद्या का वर्णन करते हुए विद्या की श्रेष्ठता पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि वस्तुतः वही विद्या महाविद्या की कोटि में आती है जो सांसारिक संपूर्ण दुःखों का नाश कर आत्मभाव या मोक्ष को उपलब्ध कराती है। उसे दुःख विमोचनी भी कहा गया है। इतना ही नहीं उसमें ज्ञान के महत्त्व को प्रतिपादन करते हुए यह भी कहा गया है कि जिस प्रकार स्वास्थ्य लाभ या निरोगता के लिए सर्व प्रथम रोग या रुग्णता की अनुभूति, उसका निदान और औषधि का सम्यक् सेवन आवश्यक है, उसी प्रकार मुक्ति के लिए ज्ञान अपरिहार्य या आवश्यक है। इसी अध्याय में स्वाध्याय एवं ध्यान पर बल देते हुए निरवद्य आवरण का निर्देश भी दिया गया है । ९४
इस प्रकार तीनों जैन, बौद्ध और वेदिक परंपराओं में वर्णित विदुर के उपदेशों पर तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर ऋषिभाषित के विदुर की महाभारत के विदुर से साम्यता देखी जा सकती है। क्योंकि ऋषिभाषित में वर्णित विदुर का विद्या, महाविद्या का उपदेश वस्तुतः प्रकारान्तर से औपनिषदिक “सा विद्या या विमुक्तये" का स्मरण कराता है। किन्तु जहाँ तक ऋषिभाषित के विदुर और बौद्ध परंपरा में विदुर की समानता का प्रश्न है, डॉ सागरमल जैन ने उनमें कोई संबंध नहीं माना है।
90. ज्ञाताधर्मकथा, सूत्र 117
91. पालिप्रापर नेम्स - खण्ड 2, पृ. 882
92. महाभारत - स्त्रीपर्व, अध्याय 2-7
93. इमा विज्जा महाविज्जा, सव्वविज्जाण उत्तमा ।
जं विज्जं साहइत्ताणं, सव्वदुक्खाण मुच्चती । जेण बंधं च मोक्खं च, जीवाणं गतिरागतिं। आया- भावं च जाणाति, सा विज्जा दुक्खमोयणी | 94. सज्झायज्झाणोवगतो जितप्पा....... समाहरेज्जा ।
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-' इसिभासियाई' 17/1, 2 - वही, 17/8 www.jainelibrary.org