________________
44
डॉ. साध्वी प्रमोदकुमारीजी
को निमंत्रण नहीं दिया जाता अर्थात् जो व्यक्ति निराकांक्ष है वह दुःख का प्रेरक नहीं होता है।
१६. शोर्यायण
ऋषिभाषित का सोलहवां अध्ययन शोर्यायण (सोरयायण) से संबंधित है। इसमें इनके उपदेश संकलित हैं। जैन परंपरा में इनका उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त स्थानांग सूत्र में हुआ है ।" उसमें कर्मविपाक (दुःखविपाक) दशा के अध्ययनों का उल्लेख हुआ है और उसके सातवें अध्ययन का नाम सोरिय कहा गया है। वर्तमान में कर्मविपाकदशा के दस अध्ययन मिलते हैं, उसमें अष्टम अध्ययन में सोरियदत्त का उल्लेख मिलता है जिसे एक मछुआरे के पुत्र के रूप में उल्लिखित किया गया है। साथ ही उस कथा में यह भी बताया गया है कि मछली का कांटा इनके गले में फंस जाने के फलस्वरूप इन्हें काफी कष्ट झेलना पड़ा था।
जैन परंपरा के अतिरिक्त बौद्ध परंपरा में सोरिय का उल्लेख सोरेय्य के रूप में मिलता है ।" इस परंपरा में इनके जीवन के संबंध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है।
जैन और बौद्ध परंपरा के अतिरिक्त वैदिक परंपरा में महाभारत के द्रोणपर्व में भी इनका उल्लेख हुआ है।" किन्तु उसमें इनका नाम शौरी उल्लिखित है। साथ ही यह भी कहा गया है कि इनके कुटुम्ब का संबंध कृष्णपिता वासुदेव से बताया गया है।
ऋषिभाषित में इनके उपदेशों का मुख्य प्रतिपाद्य विषय है इन्द्रिय आवेगों पर सम्यक् नियंत्रण। सम्यक् नियंत्रण से उनका ये उद्देश्य कदापि नहीं है कि उनका दमन किया जाय, अपितु वे उसमें स्पष्टरूप से कहते हैं कि इन्द्रियाँ है तो वे अवश्य ही अपने-अपने विषयों से जुड़ेंगी या उनका उनसे संपर्क होगा। यहाँ तक मनुष्य विवश है या यूँ कहें कि यह उसकी नियति है । किन्तु उसका कर्तव्य यह है कि मनोज्ञ या अमनोज्ञ अथवा अनुकूल या प्रतिकूल रूपादि पदार्थों की अनुभूति होने पर भी उसमें अनासक्त दृष्टि रखें अर्थात् राग-द्वेष नहीं करें, आसक्त न हो यही व्यक्ति के अधिकार की सीमा में है । प्रस्तुत अध्याय के प्रवक्ता का भी यही आशय है। "
जहाँ तक ऋषिभाषित के शोर्यायण का प्रश्न है बौद्ध और वैदिक परंपरा में क्रमशः वर्णित सोरेय्य और शौरी से इनका कोई संबंध प्रतीत नहीं होता है।
86. स्थानांगसूत्र 155
87. धम्मपद अट्ठकथा, भाग 1, पृ. 324 88. महाभारत- द्रोणपर्व 144/7
89. मणुण्णेसु सद्देसु...... णो दूसेज्जा ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
-' इसिभासियाई' 16 / गद्यभाग
www.jainelibrary.org