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ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन वर्तमान में यह अध्ययन अन्तकृत में अनुपलब्ध है। भयाली के दो अन्य प्राकृत रूप भग्गई और भगालि भी उपलब्ध होते हैं। औपातिक७२, सूत्र में भगगई परिव्राजक और उनके शिष्य-समुदाय का वर्णन उपलब्ध होता है। ऐसा लगता है कि भयालि के शिष्य ही भग्गई नाम से प्रचलित रहे होंगे।
बौद्ध परंपरा में मगध के ब्राह्मण परिवार से संबंधित मेत्तज थेर का उल्लेख उपलब्ध होता है।७३ इनके संबंध में यह कहा गया है कि ये आरण्यवासी भिक्षु के रूप में साधना करते थे, किन्तु बुद्ध के उपदेशों से प्रभावित होकर बौद्ध भिक्षु बने और अन्तः अर्हत् पद को प्राप्त किया। बौद्ध परंपरा में दो अन्य मेत्तगू और मैत्तिय थेर का भी वर्णन मिलता है। मैत्तिय थेर के संबंध में यह माना गया है कि ये छब्बगीय नामक एक भिक्षु वर्ग के नेता थे। इनके बारे में यह भी कहा गया है कि ये आगामी काल में बुद्ध होंगे। सुत्तनिपात में एक अन्य अर्हत् मेत्तेय का उल्लेख हुआ है, जो कि तिस्स के मित्र थे।७६ ऋषिभाषित के भयालि से उपरोक्त वर्णित थेरों का क्या संबंध रहा होगा? निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
महावीर के दसवें गणधर का नाम मेत्तेज्ज था, किन्तु ऋषिभाषित के मेत्तेज भयाली से गणधर मेत्तेज्ज भिन्न व्यक्ति थे, ऐसा प्रतीत होता है।
ऋषिभाषित में उनके उपदेशों में विद्यमान अविद्यमान कर्म की चर्चा है। इसमें वे यह भी कहते हैं कि जड़ के सिंचन से फल की उत्पत्ति होती है और जड़ नाश से फल-फूल सब कुछ नष्ट हो जाते हैं। इसी अध्ययन में ये भी कहते हैं कि सत् का विनाश नहीं होता और असत् की उत्पत्ति नहीं होती। वस्तुतः यह उपदेश सांख्य दर्शन के सत्कार्यवाद से समानता रखता है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि भयालि के उपदेश का मुख्य प्रतिपाद्य विषय तो आत्म विमुक्ति है।
"मेत्तेज्ज भयालि" इस नाम पर विचार करें कि नाम के आगे लगा मेत्तेज्ज शब्द व्यक्ति बोधाक है या विशेषण है? क्योंकि महावीर के दसवें गणधर का नाम मेत्तेज्ज कहा गया है। किन्तु डॉ सागरमल की दृष्टि में मेत्तेज्ज भयालि गणधार मेत्तेज्ज से भिन्न है।
72. औपपातिक सूत्र 73. थेरगाथा 84 74. ऋषिभाषित को भूमिका (डॉ सागरमल जैन) 75. वही 76. वही 77. मूलसेके फलुप्पत्ती, मूलघाते हतं फलं।
फलस्थी सिंचती मूलं, फलघातीण सिंचती। 78. सन्तस्स करणं णत्थि, णासतो करणं भवे।
बहधा दिळं इमं सट्ठ, णासतो भवसंकरो।।
-'इसिभासियाई' 13/6
-वही, 13/4
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