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ऋषिभाषित का दार्शनिक अध्ययन
जो
की चर्चा करते हुए मोक्ष के स्वरूप की तुलना दीपक के उदाहरण द्वारा करते हैं, कि स्पष्ट रूप से उनके बौद्ध परंपरा के ऋषि होने का सूचक है।
१०. तेतलीपुत्र
ऋषिभाषित का दसवां अध्ययन तेतलीपुत्र से संबंधित है। इसमें तेतलीपुत्र के उपदेश संकलित हैं। तेलीपुत्र का उल्लेख न केवल ऋषिभाषित में हुआ है अपितु जैन परंपरा के ज्ञाताधर्मकथा, विपाकसूत्र, सूत्रकृतांगचूर्णि अदि ग्रंथों में भी मिलता है । " ज्ञाताधर्मकथा में इनका उल्लेख कनकरथ राजा के मंत्री के रूप में हुआ है, जो कि तैतलीपुर के निवासी थे। ज्ञाता में कनकरथ राजा के संबंध में यहा कहा गया है कि ये अपनी संतान को विकलांग कर देते थे। क्योंकि उन्हें यह भय था कि कहीं मुझे सत्ताच्युत न होना पड़े। परंतु कनकराजा की पत्नी पद्मावती के लिए यह असह्य था। एक दिन अवसर पाकर रानी ने आद्योपान्त समस्या अमात्य तेतलीपुत्र के सम्मुख प्रस्तुत कर दी। संयोगवश रानी पद्मावती पुत्र को जन्म देती है और अमात्य पत्नी पोटिल्ला मृत कन्या को जन्म देती है । तेतलीपुत्र मृत कन्या को महारानी को सौंपकर उनके पुत्र को घर ले आते हैं और पुत्र महोत्सव करते हैं।
पोटिल्ला साध्वियों से प्रतिबुद्ध होकर जैन दीक्षा अंगीकार करती है। कनकरथ की मृत्यु के पश्चात तेतलीपुत्र के द्वारा पोषित कुमार सिंहासन पर बैठता है और वह भी अमात्य को पूर्ण सम्मान देता है । कथानुसार पोटिल्ला देव बनती हे और राजा को अमात्य के विरूद्ध कर देती है। परिणाम स्वरूप तेतलीपुत्र अत्यन्त दुःखी और अपमानित होकर आत्महत्या करने का प्रयास करते हैं । किन्तु अपने प्रयत्नों में असफल रहते हैं। फलस्वरूप उनके जीवन में अश्रद्धा, अविश्वास और अशान्ति का साम्राज्य छा जाता है। अनुकूल अवसर को जानकर पत्नी पोटिल्ल देवता के रूप में तेतलीपुत्र को संन्यास की ओर प्रेरित करती है। अमात्य तेतलीपुत्र प्रतिबुद्ध होकर दीक्षा धारण करते हैं और तप-संयम की उत्कृष्ट साधना से मुक्ति को वरण करते हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त वर्णन से जो ज्ञात होता है कि वही भाव और समान कथा ऋषिभाषित में थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ उल्लिखित हुई है।
बौद्ध और हिंदू परंपरा में तेतलीपुत्र का उल्लेख हमें उपलब्ध नहीं होता है।
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(अ) ज्ञाताधर्मकथा 1/14
(ब) विपाकसूत्र 32 (स) सूत्रकृतांगचूर्णि, पृ. 28
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